सत्संगियों के अनुभव Experience of Satsangis
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
‘‘…इसका नाम खुशिया रखते हैं’’
प्रेमी कबीर जी गांव महमदपुर रोही, जिला फतेहाबाद (हरियाणाा) से पूजनीय साई बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्मे का वृत्तांत इस प्रकार बताते हैं-
सन् 1953 की बात है। दयालु सतगुरु शाह मस्ताना जी महाराज एक दिन डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम पधारे हुए थे। वो भण्डारे का दिन था। उस भण्डारे पर पूज्य बेपरवाह सार्इं जी ने पहले स्वयं किलो-किलो (एक-एक किलो) की जलेबियां निकाल कर दिखाई और हलवाई को भी ऐसी बड़ी-बड़ी जलेबियां निकालने का हुक्म फरमाया। हलवाई सिरी राम अरोड़ा पूज्य सार्इं जी के हुक्मानुसार बड़ी-बड़ी जलेबियां निकाल रहा था।
Experience of Satsangis हलवाई सिरी राम के पास ही एक बुजुर्ग व्यक्ति लकड़ियां पाड़ रहा था। उस बुजुर्ग का नाम मोमन लोहार था। वह महमदपुर रोही गांव का रहने वाला था। उस बुजुर्ग ने सार्इं बेपरवाह जी के चरण-कमलों में विनती की कि सार्इं जी, लड़का (बेटा) चाहिए। उसने कहा कि मेरे चार बेटियां हैं, पर बेटा नहीं है। उस बुजुर्ग की उम्र 65 वर्ष की थी। लड़कियां बड़ी हो गई थी। पन्द्रह वर्ष से कोई औलाद नहीं हुई थी। पूज्य सार्इं जी ने वचन फरमाया, ‘अब तुम बूढ़े हो चुके हो। लड़का होना मुश्किल है। परंतु अकाल पुरुख से आज पता करेंगे कि मोमन के नसीब में लड़का है या नहीं। तुझे कल को बताएंगे।’ अगले दिन मोमन लोहार सुबह छह बजे ही अमरपुरा दरबार में आ गया।
उस समय बेपरवाह सार्इं जी वहां बनी एक छोटी-सी बगीची में टहल रहे थे। मोमन लोहार ने आते ही पूज्य बेपरवाह जी के पवित्र चरण-कमलों में अर्ज-विनती कर दी कि सार्इं जी, अकाल पुरुख से मेरे लिए लड़के की पूछताछ की क्या? सर्व सामर्थ दयालु दातार जी ने वचन फरमाया, ‘आपके नसीब में लड़का नहीं था, लेकिन अकाल पुरुख से लड़- झगड़कर एक लड़का मंजूर करवाया है।’ कुल मालिक सार्इं जी के वचनानुसार एक साल के बाद उस बूढे मोमन लोहार के घर लड़के ने जन्म लिया। जब लड़का एक महीना पांच दिन का हुआ, तो मोमन लोहार अपने परिवार सहित बच्चे (अपने बेटे) का नाम रखवाने और पूज्य बेपरवाह सार्इं जी को बधाई देने, धन्यवाद करने के लिए दरबार अमरपुरा धाम महमदपुर रोही में आ गया। उन दिनों पूज्य सार्इं जी महमदपुर रोही दरबार में सत्संग फरमाने के लिए पधारे हुए थे।
पूज्य शहनशाह जी ने उस लड़के का नाम ‘मुश्किल खुरशैद’ रख दिया। मुश्किल खुरशैद का अर्थ है कि बड़ी मुश्किल से खुशी मिली है। मोमन लोहार का परिवार नाम रखवा कर वापिस घर जाने के लिए दरबार के गेट पर पहुंचा तो वे लड़के का नाम भूल गए। वो दोबारा फिर लड़के का नाम पूछने बेपरवाह जी के पास आए। बाहर निकलते ही फिर नाम भूल गए। इसी प्रकार वो पांच बार नाम पूछने के लिए पूज्य सार्इं जी के पास आए। फिर मोमन लोहार ने पूज्य बेपरवाह सार्इं जी के पवित्र चरण-कमलों में विनती की कि सार्इं जी, सीधा-सा (सरल-सा) नाम रख दो जी, जो हमें याद रह जाए।
इस पर परम दयालु शहनशाह जी ने वचन फरमाया, ‘‘तुमको बहुत खुशी हुई है ना, तो इसका नाम ‘खुशिया’ रखते हैं।’’ इस प्रकार उस लड़के के जन्म की खुशी घर में ही नहीं, पूरे गांव में हुई। सारे गांव में कुल मालिक की जय-जयकार हुई।
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