Our National Flag - Republic Day Special -sachi shiksha hindi

हमारा राष्टÑीय ध्वज -गणतंत्र दिवस विशेष

’प्रत्येक राष्टÑ के लिए झंडा होना अनिवार्य है। लाखों ने इनके लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। नि:संदेह यह एक प्रकार की बुतपरस्ती है मगर इसे तबाह करना पाप होगा क्योंकि झंडा आदर्श का प्रतीक है। यूनियन जैक के लहराने पर जो लहर अंग्रेजों के मन में दौड़ती है, उसका अनुमान लगाना हमारे लिए मुश्किल है। पट्टियां और नारे अमेरिकावासियों के लिए अपने आप में एक दुनिया है। हम हिन्दुस्तानी हिन्दू-मुस्लिम और पारसी और उन सबके लिए जिनका भारतवर्ष घर है यह जरूरी है कि हमें अपने झंडे की पहचान हो और हम उसके लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दें। ’झंडे के प्रति गांधी जी के ये विचार हमारे लिए प्रेरक हैं।

हमारा प्यारा तिरंगा ही भारत का राष्टÑीय झंडा है। यह वही ध्वज है जिसके नीचे अनेक वीर जवानों ने देश को स्वतंत्र कराने की कसमें खायी, लाखों राष्टÑभक्तों ने इसकी प्रतिष्ठा को अक्षुण्ण रखने के लिए कठोर से कठोरतम यातनाएं झेलीं। अन्तत: हमारा मुल्क आजाद हुआ। यूनियन जैक नीचे उतरा और हमारा तिरंगा गगन में अबाध लहराने लगा। तब सभी भारतीयों ने इसके सम्मान में राष्टÑगीत गाकर वातावरण को आजादी का अहसास कराया था।

हम आज जिस रूप में अपने ध्वज को देख रहे हैं, वह वैसा नहीं था। इसने समय के उत्थान-पतन का सामना किया है। इसका वर्तमान रूप स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हुई भारी उथल-पुथल का परिचायक है। सर्वप्रथम 7 अगस्त 1906 को भारत का राष्टÑीय ध्वज ग्रीन पार्क कोलकाता में फहराया गया था जिसमें लाल, पीली व हरी पट्टियां थी। इन पट्टियों में लाल पर सफेद रंग के आठ कमल, पीली पर ‘वन्देमातरम’ और हरी पर एक कोने में सूरज और दूसरी ओर चांद तारा बना हुआ था। परिवर्तनों के दौर से गुजरता हुआ 1931 में यह तिरंगा केसरिया, सफेद, हरा के रूप में आया। इसके लगभग डेढ़ दशक बाद 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा के अधिवेशन में इस राष्टÑीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्ताव रखा।

हम अपने राष्टÑीय ध्वज को प्यार से तिरंगा भी कहते हैं। वह इसलिए कि इसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की तीन पट्टियां हैं। सफेद पट्टी पर भारत के अति प्राचीन व गौरवशाली संस्कृति का प्रतीक अशोक चक्र है। विद्वानों ने राष्टÑीय ध्वज के प्रत्येक भाग का अपने-अपने ढंग से वर्णन किया है। कुछ ने केसरिया को साहस व बलिदान, सफेद को सच व शांति, हरे को विश्वास व वीरता और चक्र , जिसमें 24 आड़ी रेखाएं हैं, जो चौबीसों घंटे प्रगति पथ पर बढ़ते रहने का द्योतक बताया है।

महान दार्शनिक डॉ. राधाकृष्ण ने ध्वज का विश्लेषण इन शब्दों में किया था-केसरी या भगवा त्याग का प्रतीक है। हमारे आचार और व्यवहार के संरक्षण के लिए सत्य मार्ग है। हरा रंग धरती और इसके पेड़-पौधों से हमारे रिश्ते को दर्शाता है। सफेद रंग की पट्टी के बीच अशोक चक्र धर्म के चक्र का प्रतीक है। सत्य धर्म और सश्वुण इस झंडे के तले काम करने वालों के लिए नियंत्रक सिद्धान्त होने चाहिए। चक्र गति का भी प्रतीक है। रुकने का नाम मृत्यु है। गति में जिदगी है। भारत को परिवर्तन का विरोध हर्गिज नहीं करना चाहिए।

हमारे राष्टÑीय ध्वज मे तीनों रंगों की पट्टियों की लम्बाई तथा चौड़ाई बराबर होती है। इसमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और सबसे नीचे हरा रंग होता है। झंडे की कुल लम्बाई और चौड़ाई का अनुपात 3 और 2 का होता है। ध्वज को पूरा सम्मान देते हुए इसके नियमों का अक्षरश: पालन करना चाहिए। मैले, फटे या लिखे झंडे को कभी नहीं लहराना चाहिए। झंडोत्तोलन के समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इससे ऊपर या इसके दाहिनी ओर कोई अन्य झंडा या चिन्ह न हो। एक साथ कई ध्वज फहराने हों तो सबसे पहले राष्टÑीय ध्वज को फहराना चाहिए और अन्य सभी झंडों के बाद इसको उतारा जाना चाहिए। किसी जुलूस में इसे उठाना हो तो सबसे आगे और उठाने वाले के दाहिने कंधे पर होना चाहिए। ध्वज हमेशा सीधा उठाना चाहिए और बिल्कुल चोटी पर होना चाहिए।

आम जन राष्टÑीय ध्वज को कुछ विशेष अवसर जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयन्ती आदि पर अपने घरों पर फहरा सकते हैं जबकि सरकारी इमारतों पर यह प्रतिदिन लहराता है। किसी के प्रति राष्टÑीय शोक व्यक्त करने के लिए झंडा पूरा या आधा झुका दिया जाता है। हर भारतीय का यह परम कर्तव्य है कि राष्टÑीय ध्वज, जो भारत के आन, बान और शान का परिचायक है, के आदर्श का मरते दम तक पालन करें और इसे कभी न झुकने दें। तभी वह सच्चे अर्थों में भारतवासी है।
-संजीव कुमार ‘सुधाकर’

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