पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी प्रगट सिंह पुत्र सचखंड वासी नायब सिंह गांव नटार जिला सरसा(हरियाणा)
सन् 1967 की बात है। हम दोनों बहन-भाई होस्टल में पढ़ते थे। हमें स्कूल वाले हुसैनी वाला सतलुज दरिया के पास बनी भगत सिंह की यादगार(समाधि)दिखाने के लिए ले गए।
उस समय दरिया में पानी बहुत कम था। मैं तथा एक अन्य लड़का दरिया देखने के लिए पानी के पास चले गए। उसी समय पीछे से पानी का जोरदार चढाव आया। एक तेज लहर आई वह लहर मुझे बहा कर ले गई। मेरी बहन ने मुझे देखकर चीख मार दी तो हमारे अध्यापक हमें बचाने के लिए दरिया में कूद पड़े। परन्तु उनके पहुंचने से पहले ही मुझे एक अजनबी पुरुष ने पानी से बाहर निकाल दिया। हमारे अध्यापक ने मुझ से पूछा कि तुझे बाहर किसने निकाला है? तो मैंने उस अजनबी पुरुष का सारा हुलिया बता दिया। परन्तु उस समय वह अजनबी पुरुष वहां नहीं थे, पता नहीं चला कि वह अजनबी पुरुष किधर गए या अदृश्य हो गए। मैंने अपने अध्यापकों को जब उस अजनबी पुरुष के बारे बताया तो वह कहने लगे कि लड़का पानी से डर कर घबरा गया है, इसलिए इस तरह की बातें करता है।
सन् 1974 की बात है। हम लुधियाना से आगे गुमटाली एक ज्योतिषी के पास जाया करते थे। एक दिन वहां जब मैं घर से बाहर गया तो डोमना-माखो मेरे पीछे पड़ गया। मैं भाग कर उस ज्योतिषी के घर पहुंचा, परन्तु सारा मखियाल मेरे पीछे ही था। मेरे अनगिनत मक्खियां लड़ गई। मैं बेहोश हो गया। मेरी मां जो मेरे साथ गई थी, रब्ब के आगे प्रार्थनाएं करने लगी। मुझे एवल के टीके लगा कर लुधियाना हस्पताल में लाया गया। वहां एक अजनबी पुरुष ने मुझे दर्शन दिए और फरमाया कि बेटा, तुझे कुछ नहीं होता, अभी तो तूने नाम लेना है।
पहले तो मैंने सोचा कि ये कोई डाक्टर है परन्तु जब उस तरह का कोई डाक्टर दोबारा ड्यूटी पर न आया तो मैंने सोचा कि किसी मरीज का वारिस होगा। फिर मेरे सात साल पहले वाली बात याद आई कि यह तो वही अजनबी पुरुष है जिन्होंने मुझे पानी में से निकाल कर मेरी जान बचाई थी। डाक्टर ने जब देखा कि इतनी मक्खियों का जहर चढ़ा है तो वह कहने लगा कि अगर मरीज कल तक ठीक रहा तो ठीक हो जाएगा। मैं अगले दिन ही बिल्कुल ठीक हो गया।
मुझे अक्सर ही सुपने में उस अजनबी पुरुष के दर्शन होने लगे। सच्चे सौदे के बारे न तो हमने कभी सुना था और न ही जानते थे।अन्य कई साधु-संतों बारे सुना था। मैंने सोचा कि कोई संत-महापुरुष होंगे। और-और अस्थानों पर कई बार जाता रहा परन्तु मेरे मन की तसल्ली न हुई। आखिर जब मैंने नाम लेने की योजना बनाई तो मैं उन संतों के पेश हुआ। वह संत कहने लगे कि काका! हम तो जोड़े को नाम देते हैं।
तू शादी के बाद नाम ले जाना। मैं निराश होकर वापिस लौट आया। उसी रात मुझे उसी अजनबी पुरुष ने दर्शन दिए और वचन किए,‘बेटा! सरसे तों तैनूं नाम मिल जावेगा।’ मैंने बहुत सोचा कि सरसे बारे तो मैंने सुना ही नहीं। उस दिन मैं अपने ननिहाल गांव उदेकरन गया तो एक आदमी वहां बैठा था जो मेरे मामा जी को कह रहा था कि शराब न पिया करो। मेरे मामा जी उसके पास से उठ कर चले गए। उस आदमी ने मुझे सच्चे सौदे बारे बताया। उस दिन शुक्रवार था। मैं अगले दिन ही उस आदमी के साथ नाम लेने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा पहुंच गया।
जब मैंने परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन किए तो मैं हैरान रह गया कि ये तो वो ही संत हैं जिन्होंने मुझे दरिया में से निकाला था और डोमना लड़ने पर हस्पताल में दर्शन दिए थे तथा अनेक बार दर्शन देते रहते हैं। पूर्ण सतगुरु नाम लेने से पहले भी अपने उस जीव की पूरी पूरी संभाल करते हैं जैसा कि उपरोक्त करिश्मे में स्पष्ट है। इस तरह खण्डों-ब्रह्मंडों के मालिक और सृष्टि के सृजनहारे प्रभु परम पिता परमात्मा पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने मुझे नाम की दात बख्श कर मुझे जनम-मरन चौरासी के चक्कर से आजाद (छुटकारा) कर दिया।
‘धन धन परम पिता शाह सतनाम जी शुक्र तेरा लख बार करां।’