सब भ्रम-भुलेखे दूर किए – सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
जोगिंदर सिंह पुत्र स. वीर सिंह गांव गंधेली तहसील रावतसर जिला हनुमानगढ़ (राज.) से पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के एक अनोखे करिश्मे का वर्णन इस प्रकार करता है:-
सन् 1958 का जिक्र है, हमारे भाइयों ने पूजनीय मस्ताना जी महाराज से नाम शब्द ले रखा था। पूज्य सार्इं जी ने हमारे भाईचारे के प्रेमियों को वचन किए थे कि ‘तुम मांगना छोड़ दो, मेहनत करके खाओ, नहीं तो तुम्हें लेखा देना पड़ेगा। ’ बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के वचनानुसार ही भाईचारे के बहुत से लोगों ने गंधेली में आकर जमीन खरीद ली। मैं भी उनमें शामिल था।
बिरादरी के लोगों ने मुझसे कहा कि तू भी सच्चे पातशाह मस्ताना जी से नाम-शब्द ले ले। मैं नाम तो लेना चाहता था, पर मेरे मन में कई भ्रम-भुलेखे थे। उन्हीं दिनों बिरादरी के लोगों ने सत्संग सुनने के लिए डेरा सच्चा सौदा जाना था। मैं भी उनके साथ चल पड़ा। रास्ते में मेरे मन ने पूजनीय सार्इं जी के प्रति बुरे ख्याल दे दिये कि मस्ताना जी कोई चोर-ठग्ग या कोई पाखंडी साधु ना हो। उस समय आने-जाने के साधन बहुत कम थे।
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हम सब पैदल आ रहे थे। जब नोहर पहुंचे तब तक अंधेरा होने को आ गया, इसलिए हमने रात नोहर धर्मशाला में गुजारने का निर्णय लिया। धर्मशाला में रात्रि ठहराव के दौरान कुछ प्रेमी भाई चादर ओढ़ कर नाम सुमिरन करने लगे। लेकिन मेरे अंदर वही विरोधी ख्याल भरे हुए थे। हालांकि मैं मालिक सतगुरु से मिलना चाहता था, पर मुझे बेपरवाह मस्ताना जी महाराज पर विश्वास नहीं आ रहा था कि वह कुल मालिक, पूर्ण सतगुरु हैं। मैं अपने ईष्ट देव को ध्याता हुआ लेट गया। अभी अर्धनिंद्रा की अवस्था में लेटा हुआ था कि मुझे एकदम पीछे से बहुत ही सुंदर सा प्रकाश दिखाई दिया। उस नूरी प्रकाश में मुझे बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन हुए। उन्होंने सफेद वस्त्र धारण किए हुए थे।
शीश पर सफेद परना बांधा हुआ था और डंगोरी लेकर खड़े थे।
पूज्य शहनशाह जी के दर्शन करके मुझे असीम खुशी मिली। मैं एकदम से उठकर बैठ गया तो वे तुरंत अलोप हो गए। मैंने इधर-उधर दूर तक देखा, पर मुझे कहीं भी दिखाई न दिए।
अगले दिन सुबह ही हम डेरा सच्चा सौदा सरसा की ओर चल पड़े। जब हम रंगड़ी गांव के पास पहुंचे तो फिर मेरे मन में ख्याल आया कि सार्इं मस्ताना जी कोई जादूगर न हों, कहीं धोखा न हो जाए। मेरे मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे कि यह कैसे पता चलेगा कि सार्इं मस्ताना जी पूर्ण गुरु हैं। इसी दरमियान हम डेरे के बिलकुल करीब पहुंच गए। तभी ख्याल आया कि मैं यहीं रास्ते में बैठ जाता हूं, अगर गुरु पूरा है तो मुझे लेने आएगा।
फिर मन ने ख्याल दिया कि तू चल, सत्संग सुन अगर मन न माना तो नाम-शब्द न लेना। यही सोच-विचार करता हुआ मैं संगत के साथ डेरा सच्चा सौदा के गेट के पास पहुंच गया, लेकिन सबसे पीछे था। अंदर से ऊंची आवाज आई, बारी खोल दो। सेवादारों ने गेट में बनी खिड़की खोल दी। संगत अंदर चली गई। जब मैं गेट पर पहुंचा तो फिर अंदर से ऊंची आवाज आई, गेट खोल दो। सेवादारों ने पूरा दरवाजा खोल दिया। जब मैं दो-तीन कदम अंदर गया तो सामने से शहनशाह मस्ताना जी महाराज गेट की तरफ आ रहे थे। मैंने सच्चे पातशाह जी को अपना सिर झुकाकर धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा का नारा लगाया। बेपरवाह जी ने मुझ पर अपनी पूरी तवज्जो देते हुए फरमाया- ‘आओ सार्इं, आओ सार्इं, आओ सार्इं।’ तीन बार बोलकर मेरे गंदे मन के सभी भ्रम चकनाचूर कर दिए। मैं शर्मिन्दा था और खुश भी था कि ऐसा अंतर्यामी मालिक स्वरूप संत-महापुरुष को कहीं नहीं देखा।
फिर मैंने पूज्य मस्ताना जी महाराज के चरणों में अर्ज की कि सार्इं जी, हुक्म हो तो सेवा कर लें। पूज्य महाराज ने फरमाया- ‘सार्इं करो, सार्इं करो, सार्इं करो।’ सत्संग रात को शुरू हुआ, जो सुबह तीन बजे तक चला। पूज्य मस्ताना जी ने सत्संग की समाप्ति करके संगत को फरमाया- भजन का टाइम हो गया है, हम भजन करने के लिए गुफा में जा रहे हैं। वाली दो जहान सतगुरु जी ने सुबह 7-8 बजे नाम अभिलाषी जीवों को नाम की दात दी जो मैंने भी ग्रहण कर ली। मैंने नाम लेते ही नाम का सुमिरन करना शुरू कर दिया। पूजनीय सार्इं जी ने मुझे नाम अभ्यास के दौरान बेशुमार नजारे दिखाए जिनका हूबहू वर्णन हो ही नहीं सकता।
सतगुरु घट-घट व पट-पट की जानने वाला होता है, इन्सान की बुद्धि सीमित है। पूर्ण रूहानी संत-महापुरुष को समझना इन्सान के वश की बात नहीं है। महात्मा तुलसी दास जी ने ठीक ही लिखा है: ‘जे को कहे मैं संत को चीन्हा। तुलसी हाथ कान को दीन्हा।।’
संतों का भेद न किसी ने पाया है और न ही कोई पा सकता है।