ruhani satsang

जो नाम जपे घर जाए भाई, काल न उसको खाए भाई। जन्म सफल हो जाए भाई, नाम ध्याना, नाम ध्याना।

रूहानी सत्संग: पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा सरसा Ruhani Satsang

जो भी साध-संगत आस-पास, दूर-दराज से सत्संग रूपी बाग, रंग-बिरंगी फुलवाड़ी के रूप में सजी है, मन व मनमते लोग सत्संग में आने नहीं देते, पर फिर भी इंसान अपने मन से लड़ते हुए सत्संग में पधारता है, आप सबका सत्संग में पधारने का तहदिल से बहुत-बहुत स्वागत करते हैं, जी आया नूं, खुशामदीद कहते हैं, मोस्ट वैल्कम।

सत्संग का जो भजन है, जिस पर सत्संग होगा, वो भजन है:-

जो नाम जपे घर जाए भाई, काल न उसको खाए भाई,
जन्म सफल हो जाए भाई, नाम ध्याना, नाम ध्याना।।

जो मालिक का नाम जपते हैं, उसकी भक्ति-इबादत करते हैं, लगातार सुमिरन करते हैं वो आवागमन को खत्म करके निजधाम, सचखण्ड, सतलोक, अनामी में चले जाते हैं। आत्मा को सदियां हो चुकी काल के दायरे में घूमते हुए। पता नहीं कितना समय हो गया आत्मा को परमात्मा से बिछुड़े हुए, चौरासी लाख शरीरों में चक्कर लगाते-लगाते आखिर में मनुष्य शरीर मिला है। इसमें अगर भक्ति-इबादत की जाए तो जन्म-मरण के चक्कर से, दु:ख-परेशानियों से हमेशा के लिए मुक्ति मिल सकती है। मालिक का नाम ऐसा मुक्ति का दाता है जिसका कोई और जोड़ नहीं है। हैरानी की बात ये है कि नाम लेने में किसी भी तरह की कोई तकलीफ इन्सान को नहीं आती। चलते-बैठते, लेटकर, काम-धंधा करते हुए जितना कोई सुमिरन करता है, जितनी भक्ति-इबादत करता है, उतना ही सुख-शांति के नजदीक वह होता चला जाता है।

इसलिए नाम जपना, सुमिरन करना बहुत जरूरी है। सुमिरन, भक्ति-इबादत आदिकाल से चली आ रही है। हर युग में आत्मा की अगर कोई खुराक है तो वो प्रभु-परमात्मा का नाम, उसकी भक्ति- इबादत है, इसके अलावा न तो आत्मा के कुछ काम आता है और न ही सुख-शांति मिलती है । जैसे आप किसी भी तरह का टॉनिक लेते हैं उसका असर शरीर पर जरूर होता है। कम ताकत मिले, ज्यादा मिले, ये उस टॉनिक में मौजूद विटामिनों पर ही निर्भर होता है, पर फिर भी शरीर के लिए इन्सान दिन-रात खाए जा रहा है, लेकिन जिसकी वजह से शरीर सही- सलामत है,शरीर सजीव है, उसके लिए अगर कोई टॉनिक है तो वो ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम है, राम-नाम की दवा है, भक्ति-इबादत है। वही एक ऐसा टॉनिक है जिसको लेने से आत्मा को बल मिलता है, आत्मा को शक्ति मिलती है।

कई बार इन्सान जीवन जीते-जीते इतना थक जाता है, इतनी गम-चिंता, टैंशनों में घिर जाता है कि उसको अपना जीवन बोझ लगने लगता है। ऐसी स्थिति जब इंसान की आती है तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। न औलाद, ना मां-बाप और न ही रुपया-पैसा। क्योंकि तब मन इतनी गिरावट डाल देता है कि इन्सान ढंग से बोल भी नहीं पाता, चल भी नहीं पाता और जब आपको ऐसा लगता है तो इसका सीधा सा मतलब है कि आपकी आत्मा कमजोर होती जा रही है यानि मन जालिम आत्मा को दबाए जा रहा है और ऐसा लगने लगे तो आप मालिक के नाम का सुमिरन करें। सुमिरन ही आत्मा को शक्ति देता है जिससे मन रुक जाता है। आत्मा शक्ति हासिल करके प्रभु की दया-रहमत के करीब होती जाती है और एक दिन उसके दर्श-दीदार के काबिल भी जरूर बन जाती है।

नाम में बहुत शक्ति है, पर कोई खाए, आजमाए तभी पता चलेगा। जब तक आप नाम का सेवन नहीं करते, अभ्यास नहीं करते आप कैसे बता सकते हैं कि नाम में क्या-कुछ है। सुनकर आप एक बार हां जरूर कर देंगे लेकिन आपका मन आपको विश्वास आने नहीं देगा। जब तक खुद कुछ नहीं देख लेता, जब तक उसकी दया-मेहर, रहमत का अहसास खुद को नहीं हो जाता तब तक मन दौड़ता रहेगा, मन भटकाता रहेगा। मालिक की दया-मेहर, रहमत के काबिल, लायक आप बन सकते हैं अगर सुमिरन करो। सुमिरन से शारीरिक, आत्मिक फायदा होगा और काम-वासना, क्रोध, लोभ,मोह रूपी बीमारी जरूर दूर होगी। तो सुमिरन अति जरूरी है। इस कलियुग में, वैसे तो हर युग में अगर कोई सुमिरन करता है तो ही सुख-शांति से जीवन जी सकता है। कलियुग में तो बड़ी छूट है।

ज्यादा नहीं बस घंटा सुबह-शाम आप मालिक की याद में सच्ची लगन से, तड़प से लगा करके देखिए, अगर आप लगन से, तड़प से प्रभु का सुमिरन करेंगे तो वो भक्ति जरूर मंजूर होगी और बदले में आपको फल जरूर मिलेगा। जबकि पहले युगों में लोग सारी-सारी उम्र लगा देते। समाधि में बैठे रहते, तपस्या में लगे रहते तब जाकर कहीं असर होता था। लेकिन अब कलियुग है यहां काल की मत लोग ज्यादा देते हैं। उसके पास ज्यादा जाकर बैठते हैं जो बुरी बातें ज्यादा करता है, जिसको और किसी बात का ख्याल नहीं रहता और जो अच्छी-नेक बातें होती हैं उनसे लोग कन्नी कतराते रहते हैं। मालिक के नाम का सुमिरन सब पापों को धो डालता है। जैसे कपड़े पर किसी भी तरह के दाग-धब्बे लगे हों अच्छी साबुन लेकर मल-मल कर धोओ तो कपडेÞ से मैल उतर जाती है। उसी तरह आत्मा पर जन्मों-जन्मों के कर्माें की मैल जमी हुई है। पाप कर्माें, संचित कर्माें के दाग-धब्बे लगे हुए हैं। उन दाग-धब्बों को धोने के लिए अगर कोई साबुन है तो वो ओ३म, हरि, अल्लाह, राम का नाम, गुरुमंत्र, शब्द, मैथड आॅफ मैडिटेशन, कलमां है।

अलग-अलग धर्मों में उसका नाम अलग-अलग है। जैसे साबुन को भी हर भाषा में साबुन नहीं कहा जाता तो उसी तरह मालिक के नाम का भी जो नाम है वो अलग-अलग है। साबुन का आप कोई भी नाम रखो काम तो उसने मैल निकालने का करना है। उसी तरह नाम, गुरुमंत्र, कलमा, युक्ति, विधि, तरीका जो मर्जी कहिए, पर उसने काम तो आत्मा की मैल धोने का ही करना है। आपके अंदर जो बुराई बस गई है, आपके अंदर जो बुरे, ख्याल बस गए हैं उनसे बचने के लिए सुमिरन जरूरी है वरना ये मन जालिम ऐसा खज्जल ख्ंवार करता है कि आपके जीने का नूर उड़ा देगा, अंदर से आप खुशियों से खाली हो जाएंगे, आप शरीर ऐसा खाली कर लेंगे कि आत्मा पर एक बोझ लगेगा और दु:ख-मुसीबत में खुद भी पड़ेंगे और जो आपसे बात करेगा उसको भी मुसीबत-दु:ख में डालेंगे।

क्योंकि उसका आत्म-बल गिर चुका होता है। आत्म-बल गिरने की निशानी यही होती है कि उस इन्सान को आत्मिक-शांति नहीं मिलती, आत्मिक खुशी नहीं मिलती। जहां भी वह बैठे, जिधर भी बैठे, यूं लगता है कि सब कुछ सूना-सूना है, अपनापन खत्म हो जाता है, खुशियों से खाली हो जाता है। जब तक बर्तन में पानी है वो भरा हुआ नजर आता है, खाली हो गया तो बजने लगता है। उसी तरह ओ३म, हरि, अल्लाह की दया-मेहर, रहमत है। हर कोई इज्जत-सम्मान करता है, अपने भी प्यार-मोहब्बत से बुलाते हैं। जैसे ही अंदर की वो खुशी, आत्मिक शांति चली जाती है तो जो अपने होते हैं वो भी परायों जैसा व्यवहार करते हैं। जब आप जबरदस्ती अपने विचारों को किसी पर थोपते हो तो वो सहन नहीं करेगा। आप फिर सोचेंगे कि ये मुझे इज्जत-सत्कार से क्यों नहीं देखता। तो भाई! सुमिरन से ही ये बर्दाश्त शक्ति आती है। भजन में आया:-

जो नाम जपे घर जाए भाई, काल ना उसको खाए भाई,
जन्म सफल हो जाए भाई, नाम ध्याना, नाम ध्याना।

इस बारे में लिखा-बताया है:-
नाम के जपने वाले को आंतरिक मंडलों पर कोई रुकावट नहीं होती, वह उन मंडलों में प्रकट होकर जाता है और सब उसका मान-आदर करते हैं। वो यम की तंग गलियों में नहीं जाता, क्योंकि उसका सच्चे नाम से संबंध हो जाता है। नाम के जपने वाला मोक्ष का द्वार पा लेता है और अपने परिवार का भी आधार बन जाता है, वो भवसागर से तर जाता है।
इस जहां में जिसने भी नाम लिया उसकी अगले जहां में भी जय-जयकार होती है। देवी-देव, फरिश्ते अपने ऊंचे सिंहासनों से उठकर आत्मा की जय-जयकार करते हैं कि धन्य है ये जीवात्मा, जो कलियुग में, काल के देश में रहते हुए अच्छे-नेक कर्म करके ओ३म, हरि, अल्लाह, गॉड, खुदा, रब्ब की भक्ति-इबादत करके अपने निजधाम को जा रही है। तो दोनों जहान में उसका नाम अमर हो जाता है।
भजन के शुरू में आया:-

मानस जन्म ये दुर्लभ मिला है, सदियों पीछे फू ल खिला है,
सदियों पीछे फू ल खिला है। तू इसका लाभ उठाले भाई,
नाम प्रभु का ध्याले भाई, जन्म सफल हो जाए भाई….

मनुष्य शरीर को दुर्लभ कहा गया है क्योंकि इसमें उस चरम सीमा को छुआ जा सकता है जिसके बारे में पशु-पक्षी, परिंदे सोच भी नहीं सकते। चरम सीमा यानी भगवान की तरफ, ऐसा अहसास, अनुभव किया जा सकता है, जीते-जीअ उस शक्ति के भंडार को देखा जा सकता है। इन्सान कितना भावुक होता है या मन में कितना इच्छुक होता है कि किसी के पास कोई बढ़िया सामान देख ले तो झट से पूछते हैं कि कहां से लाया है? पूछने का मतलब ये नहीं कि वो बड़ाई कर रहा है बल्कि उसके अंदर ख्याल आता है कि मेरे पास होता तो कैसा होता, ये कहां से लेकर आया है, मैं भी लेकर आऊंगा। मन ललचा जाता है। ये इन्सान की फितरत है।

इसमें कोई गलत नहीं है कि कोई भी चीज अगर अच्छी देखता है तो अंदर ख्याल आता है कि ये कैसी होगी, अजूबे हैं, उनके बारे में सोचता है कभी देखूं तो पता लगे कि कैसे हैं। देखने के बाद चाहे अच्छे लगें या न लगें वो बात दूसरी है लेकिन अंदर तो एक इच्छा रहती है ना। तो ये तो अजूबे कुछ भी नहीं। वो कैसा अजूबा होगा जिसने एक थैलीनुमा गर्भ में हम सबको बना डाला है। कैसा अजूबा है वो ऐसा दिमाग बना डाला, ऐसी बारीक नसें बना दीं। इसको बनाना तो दूर, इसको बड़े-बड़े डाक्टर तो हाथ तक नहीं लगाते। अगर एक नस भी दब गई तो कोई अंधा,बहरा, गूंगा कुछ भी हो सकता है। उस थैली में एटोमैटिकली तो हो नहीं सकता। कहने का मतलब, आखिर ऐसा क्या है, कौन है वो, कैसा होगा वो? क्या इच्छा नहीं उठती कि जो इतना कुछ बनाने वाला है, जो एक होते हुए भी कण-कण, जर्रे-जर्रे में मौजूद है, जो सबका दाता है, कोई जगह भी उसके बिना नहीं।

वो कैसा है, क्यों ना उसे देखा जाए? क्यों ना उसकी दया-मेहर, रहमत को पाया जाए? इच्छा तो उठती है लेकिन इसको पाने की इन्सान कोशिश नहीं करता। दुनियावी वस्तुएं हासिल करने के लिए तड़पता रहता है, व्याकुल, बेचैन होता रहता है। लेकिन अल्लाह, राम के लिए कितना कोई तड़पता है ये तो वो ही जानता है। बाहर से कोई नहीं बता सकता, कोई माप-तोल नहीं जिससे पता चले कि कौन कितना मालिक के लिए तड़प रहा है, ये तो वो मालिक-प्रभु-परमात्मा ही जानता है। समुद्र की गहराई शायद नाप ली जाए, आसमानों की ऊंचाई शायद नाप ली जाए लेकिन अल्लाह-मालिक के प्यार-मोहब्बत की गहराई नापने वाला कोई यंत्र नहीं बना है।

कितनी गहराई, कितनी तड़प, लगन से वो मिलता है ये संत, पीर-फकीर जरूर बताते हैं कि जैसे आप दुनियावी सामान हासिल करने के लिए तड़पते हो, पागल हो जाते हो, बेचैन हो जाते हो, उससे अगर आधा हिस्सा भी अल्लाह-मालिक के लिए तड़पो तो वो क्यों नहीं मिलेगा। पर उसके लिए तो कोई तड़पता ही नहीं। आपके बच्चे को कोई बीमारी लग गई, आप कितना रोते हैं। धन-दौलत का घाटा पड़ गया तो आप कितना रोते हैं। वो आंसू आपके जाया जा रहे हैं। अगर यही आंसू अल्लाह, वाहेगुरु, राम की तरफ बहें, उसकी याद में बहें तो वे हीरे-जवाहरात, मोती बन जाएं, इससे भी बेश-कीमती बन जाएं।
अगर मालिक की तरफ भक्ति-इबादत में समय लगाओ, उसके दर्श-दीदार की अगर एक बार झलक मिल जाए तो सारा जीवन उसी के सहारे गुजारा जा सकता है। तो ये जन्म बहुत समय बाद मिला है, सदियां गुजरने के बाद मिला है, इसका फायदा उठा भाई।

माया पीछे दौड़ा फिरता, काम तू अपना भूला फिरता,
काम तू अपना भूला फिरता। माया तुझको भटकाए भाई,
अंत समय तेरे साथ ना जाई।। जन्म सफल……

इस बारे में लिखा, बताया है:-
श्री गुरु अर्जुन साहिब जी फरमाते हैं:-यदि कोई हजार रुपया कमाता है, तब वो लाखों की प्राप्ति की तरफ निहारता है, उसकी कभी तृप्ति नहीं होती, सदा माया के पीछे मारा-मारा फिरता है। अनेकों भोगों को भोग-भोग कर वो तृप्त नहीं हो सकता बल्कि खप-खप कर मरता है। ये सब मार-धाड़ स्वप्न की तरह गुजर जाती है, लाभ कुछ नहीं होता।
धन-माल और सब सामग्री शरीर के साथ संबंध रखती है, साथ जाने वाली चीजें नहीं। कारूँ जैसे 40 खजानों के बादशाह, रावण जैसे सोने की लंका रखने वाले इस दुनिया से साथ क्या ले गए। ‘लंका गढु सोने का भइआ।। मूरखु रावनु किआ ले गइआ’।।

इन्सान आज अगर पागल है तो इन्हीं साजो-सामान के लिए। ज्यादातर लोग पैसे की हवस के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। बहुत मिल भी जाता है लेकिन उससे संतुष्टि नहीं होती। और पाने की चाह, और इकट्ठा करने की चाह उन्हे तड़पाती रहती है। आप रावण की तरफ निगाह मारकर देखिए, उसकी तरफ ध्यान दीजिए, उसके पास किस वस्तु की कमी थी! बहुत धन-दौलत, बहुत रुपया-पैसा था। इतना पैसा कि सोचा भी नहीं जा सकता। उसके नौकरों के पास भी सोने के मकान थे। क्योंकि सारी लंका ही सोने की थी। तो इतना सब कुछ होने के बाद गुरु-साहिबानों ने लिखा कि वो रावण मूर्ख कहलाया, मूर्ख का खिताब मिला और सब कुछ होते हुए भी साथ कुछ भी नहीं गया, सारा परिवार तबाह-बर्बाद हो गया। खाने को मिल जाए, मेहनत का, हक-हलाल का मिल जाए तो उस जैसा खाना दुनिया में कहीं भी नहीं।

ऐसे-ऐसे गरीब सज्जनों को देखा जो बेचारे दिहाड़ी करते हैं और शाम तक जो 50-60 रुपए मिले, खाना खाते हैं और खुशी से, हंसी-मजाक से अपना जीवन गुजारते रहते हैं। उन्हें ये पता ही नहीं कि अरबों रुपए भी कमाने चाहिएं कि जिंदगी का सुख अरबों रुपए में है। क्योंकि उन्हें उन थोड़े से रुपयों में ही बहुत खुशी आती है। उनके लिए मखमल के गद्दे या स्प्रिंग वाले बैड या कुछ ऐसा नहीं होता जो बडेÞ-बड़े घरों में देखने को मिलते हैं। वो कमाई, मेहनत करते हैं, चाहे बालू रेत का टीला है उस पर लेट गए और फिर जो नजारा नींद का आता है वो कहने से परे है। क्योंकि मेहनत की हुई होती है, हाजमा भी अच्छा होता है और नींद भी बढ़िया आती है। सुबह उठते हैं चैन, आनंद से, कोई टैंशन नहीं होती, कोई परेशानी नहीं होती। जरा उनके जीवन को देखिए, उनको पंखा भी नहीं चाहिए बाकी साजो-सामान से तो उनको क्या लेना। पर फिर भी उनका शरीर मजबूत होता है, कभी बीमार नहीं होते। क्योंकि वो मेहनत, हक-हलाल, दसां-नहुआं दी किरत कमाई, हार्ड वर्क करते रहते हैं। ये तो धर्मों में भी लिखा है कि खाली मन, खाली शरीर शैतान का चरखा है। इस पर कोई न कोई तंद चढ़ता रहेगा, कोई न कोई मीटिंग होती रहेगी, कोई न कोई बात चलती रहेगी।

तो आप अगर बुरे विचारों से बचना चाहो तो मेहनत की करके खाओ। चाहे थोड़ी आ जाए आप टैंशन मत लो। बढ़िया जीवन जी रहे हो। अल्लाह, राम, मालिक, सतगुरु की सत्संग सुनने को मिलती है, सोहबत मिलती है, घर में आपस में प्यार-मोहब्बत है, कलह-क्लेश नहीं है तो आपसे सुखी इस कलियुग में कोई और नहीं है। अगर संगमरमर के महल हैं और उसमें रहने वाले सिर्फ दो ही लोग हैं लेकिन उनका सुर में सुर नहीं मिलता, चाहे उनके पास अरबों रुपए हैं, कोठियां, बंगले हैं, संतों ने उसे शमशान भूमि, कब्रिस्तान बताया है। वहां पे तो सन्नाटा छाया रहता है और कभी रोने, कहराने और कभी चिल्लाने की आवाजें आती हैं।

तो ऐसे घरों का क्या फायदा, ऐसी कमाई का क्या फायदा। दूसरी तरफ घास-फूस की झोंपड़ी हो, छोटा सा घर हो, वहां मेहनत करने वाले हों, तो उसकी तुलना किसी राजमहल से भी नहीं हो सकती। तो भाई! मेहनत में बड़ी ही शांति है। सभी लोग सुबह चार बजे उठें, मालिक को याद करें, भक्ति-इबादत करें, अपने-अपने काम-धंधे पर जाएं। वो मौसम ऐसा खुशगवार नजर आएगा जिसे आयुर्वेदिक, ऐलोपैथिक, होम्योपैथिक में सभी डाक्टर साहिबान मानते हैं कि वो समय सबसे अच्छा है। ऐसे समय में मेहनत करो और अपने अल्लाह, वाहेगुरु राम का शुक्राना करने के लिए सुमिरन करो ताकि आपको खुशियां, शांति मिले।

सुमिरन के बिना शांति नहीं मिल सकती और मेहनत, हक-हलाल के बिना अंदर से मालिक का ख्याल आ ही नहीं सकता, बुरे-गलत विचारों का तांता लगा रहेगा, ऐसे ही विचार आते रहेंगे और मन आपको गिराता चला जाएगा। तो भाई! अच्छे काम करो, मालिक को याद करो, माया के पीछे न पड़ो। ‘माया पीछे दौड़ा फिरता, काम तू अपना भूला फिरता।’ आपका जीवन में क्या मकसद है? जीवन में आपका क्या काम है? आपने अपने जीवन में क्या लक्ष्य बनाया है? आप अपने लक्ष्य से मत भटको। आपका जो लक्ष्य अल्लाह, वाहेगुरु के नाम वाला, मेहनत, हक-हलाल वाला उस पर आप चलकर देखो। आप रास्ते से नहीं भटकोगे। मालिक आपका मददगार होगा। आप उसका सुमिरन, भक्ति-इबादत करेंगे तो वो भी आपकी मदद जरूर करेंगे।

विषयों में क्यों हुआ अंधा, काम करे गंदे से गंदा,
काम करे गंदे से गंदा। क्यों नरकों में जाए भाई,
रोए और पछताए भाई, जन्म सफल…..

विषय-विकार, काम-वासना ये ऐसी आग है जिसे लग जाती है उसके लिए रिश्ते-नाते सब खत्म हो जाते हैं। वो तिलमिलाता हुआ अपने आप ही अपने राज खोलता रहता है, तड़पता रहता है। वह कभी भी किसी की दया की भावना से या प्यार-मोहब्बत जो कि आत्मिक प्यार है, को नहीं देखते। जब भी देखते हैं, बुराई की नजर से। सामने वाले को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

आज बेचैनियां इन्हीं की वजह से हैं। आज कलियुग में जो कुछ बढ़ता जा रहा है, इन्सान की दु:ख-परेशानियां बढ़ती जा रही हैं सब कुछ इन्हीं की वजह से है। ज्यों-ज्यों समाज में विषय-विकार बढ़ रहे हैं, ज्यों-ज्यों समाज में रिश्ते-नाते टूट रहे हैं इन्सान दु:खी हो रहा है। लेकिन दु:ख छुपाने से छुपा नहीं करता। इन्सान को सोचना चाहिए कि वो जो कुछ भी कार्य करता है वो अच्छा करे लेकिन आज वो गंदे से गंदा कार्य कर रहा है। इतनी गिरावट में गिर रहा है कि बताने में भी शर्म आती है यानि इन्सान हद से गिर रहा है और इन्सानियत रसताल में जा रही है। तो भाई! ऐसे दौर में, ऐसे समय में प्रभु का नाम ही एक सहारा है। कोई उसके नाम का सुमिरन करे तो नरक जैसे जीवन से बच सकता है वरना नरक तैयार है।

इन्सान जब मालिक के नाम से दूर दौड़ता है तो वो हर तरह की बुराइयां, हर तरह के बुरे कर्म कर डालता है। लेकिन जब तक मालिक की छत्र-छाया है, उसकी दया-मेहर, रहमत जब तक महसूस हो रही है तो बुराइयों से बचा हुआ है। जैसे ही उसकी दया-मेहर, रहमत से कन्नी कतरा गया तो उस पर मन के विचार हावी हो जाते हैं और मन की वजह से फिर वो दु:खी-परेशान हो जाता है। ‘क्यों नरकों में जाए भाई, रोए और पछताए भाई’, ये उस सच्चे मुर्शिदे-कामिल शाह सतनाम जी महाराज के पाक-पवित्र वचन हैं कि भाई! जब इन्सान मन के हाथों मजबूर हो जाता है, रोता है पछताता है और जब संत समझाते हैं तब बात अच्छी नहीं लगती। संत जब किसी बात से रोकते हैं तो वो बात अच्छी नहीं लगती। जब मन हावी हो जाता है, मन बहकाने लगता है तो पश्चाताप के अलावा कुछ भी नहीं रहता। रोता है, पछताता है सिर्फ अपने कर्मों की वजह से। इसमें दूसरों को दोष क्यों देता है। लेकिन इन्सान का आज कलियुग में ये असूल है कि वो अपनी गलती नहीं मानता। अपनी खुदी में आ जाता है कि मैं ही सही हूँ, मैं गलत नहीं हो सकता। सारा दोष दूसरों पर मढ़ देता है।

पर संतों ने तो यही लिखा-

ददै दोसु न देऊ किसै दोसु करमां आपणिआ।।
जो मै कीआ सो मै पाइआ दोसु न दीजै अवर जना।।

जैसा किया उसका फल तो भरना ही होगा। अब तड़पने और चिल्लाने से तो कोई फायदा नहीं। हां, आप जो कर बैठे, उन कर्मों के फल से बचना चाहते हो तो सुमिरन करो, भक्ति-इबादत करो। आज कलियुग में दोगलापन बहुत है। दुनिया में ऐसे-ऐसे नाटकबाज, ऐसे-ऐसे कलाकार हैं कि यहां पे कुछ और लेकिन वास्तव में कुछ और। ऐसे लोगों से जब बात होती है तो यूं लगता है कि ये तो कुर्बानी का पुतला है और जब वास्तविकता पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि ये कहां पे खड़ा है। ऐसा अगर नाटकों में करे तो नंबर एक बन जाए, जैसा आज कलियुगी लोग जीवन में कर रहे हैं। आज इन्सान इन्सान की मजबूरी का फायदा उठा रहा है लेकिन उस मालिक से डरो। वो मजबूर नहीं है, वो सब कुछ देख रहा है, वो हर पल, हर क्षण की खबर रखता है। इन्सान को मजबूर करके आप झुका लोगे लेकिन वो नहीं झुकने वाला। वो, जो घट-घट में है। वो जो आपके अंदर है, वो तो जैसे आप कर्म करोगे उसी के अनुसार फल देगा। वहां न तो किसी की सिफारिश चलेगी और न ही आपके बनावटीपन का कोई असर होगा। वहां पर तो जैसे कर्म किए हैं, उसी का फल आपको मिलेगा। आगे भजन में आया:-

खाने लिए हैं पदार्थ बनाए, पीता शराब और मांस को खाए,
पीता शराब और मांस को खाए। छोड़े ना पास दवानी (दवन्नी) भाई,
ये नरकों की नानी भाई।

शराब, जिसे हिन्दू धर्म में नरकों की नानी कहा गया है तथा और भी कहा गया है जैसे कि अफीम नहीं खाना, लड़ाई-झगड़ा फालतू की बहस में नहीं पड़ना, ये संतोंके पवित्र वचन हैं जो ग्रंथों में लिखे हुए हैं, जिन्होंने उस धर्म-जाति को बनाया है। लेकिन वो जिनकी निशानियां हैं कि ये उस धर्म के हंै और कर्म मनमर्जी के कर रहे हैं, जब उनको देखो तो बड़ा ही दु:ख आता है कि संत, पीर-फकीरों ने ये सोच कर थोड़े ही धर्म-जात बनाई हंै कि ऐसा करेंगे। उन्होंने तो बहुत ही अच्छे नियम बनाए हैं लेकिन कोई मानता ही नहीं। सिक्ख धर्म में भी सभी नशों की मनाही है।

पोस्त भांग अफीम मद, नशा उतर जाए प्रभात।
नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन-रात।

पोस्त, भांग, अफीम, मद यानि शराब सुबह पीओ शाम को और शाम को पीओ तो सुबह उतर जाती है जो कि बेकार का नशा है। अगर नशा ही करना है तो वाहेगुरु, राम के नाम का करो, जो एक बार चढ़ गया, उसकी खुमारी, लज्जत, मस्ती कभी नहीं उतरती। उसकी मस्ती दोनों जहानों में कायम रहती है। इस्लाम धर्म में ‘शर+आब’ शर यानि शरारत यानि शैतान और आब का मतलब पानी। हे खुदा की इबादत करने वालो! शराब शैतान का पानी है, इसे पीना मत, वरना की गई इबादत खाक में मिलेगी, दोजख में जलोगे। तो शराब के बारे में बहुत कुछ लिखा है। लेकिन फिर भी लोग बाज नहीं आते। सत्संगोंमें भी अपने सच्चे मुर्शिदे-कामिल परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की दया-मेहर से कब से समझा रहे हैं कि भाई, नशे मत करो, ये नशे बर्बादी का घर हैं। फिर भी कई सज्जन नशे नहीं छोड़ते, कई सत्संगी भी नशे करते नजर आते हैं। बहुत दु:ख-परेशानी आती है कि भाई! ऐसा क्यों कर रहे हो? पर कलियुग है, यहां सभी धर्मों में ऐसा हो रहा है। ये नहीं कहा जा सकता कि सौ प्रतिशत सत्संगी अमल करते हैं। उनमें से देखने में आता है कि 70-80 प्रतिशत ऐसे हैं जो अमल करते हैं। आज के समय के हिसाब से इतने लोग भी अमल करें तो कोई कम नहीं।

तो भाई! इस कलियुग में संतों की बात कड़वी लगती है, इन्सान मानता नहीं। उनको रोको कि नशे मत करो तो वो ये कहते हैं कि मैं तो करूंगा, मुझे कौन रोकेगा। नशे बहुत तरह के हैं। आज नशे अजीबो-गरीब हैं। जैसे कई दवाइयां (आयोडैक्स वगैरह)हैं जो दर्द-निवारक हैं, उसको भी लोग ब्रैड पर लगा-लगा कर खाते हैं नशा करने के लिए, और भी कई टेबलेट्स (गोलियां) वगैरह हैं जिनकी अगर आदत डाल ली जाए तो उनके बगैर रहा नहीं जा सकता। अगर आप वो दवा नहीं लेते तो आपको यूं लगेगा कि आपका दिमाग फटेगा, उनसे आपका अंदर खोखला हो जाता है। इसलिए नशे मत करो। ये नशे बर्बादी का घर हैं, इन्हें छोड़ो। गांव में जो लोग होते हैं वो शराब पीकर एक-आध जो घूंट बच जाती है वो अपने बच्चों को पिला देते हैं और कहते हैं कि बेटा पीकर देख, कैसी है? वो पीता है और फिर उसका आदी हो जाता है।

तो ऐसे परिवार वाले, ऐसे मां-बाप भी हद से ज्यादा अपने बच्चों के लिए घातक हैं जो अपने बच्चों को नशों का आदी बनाते हैं या नशों के प्रति उनको सहयोग देते हैं। आपको लगता है कि आपका जो अपना है उसके लिए आपने अच्छा किया पर एक दिन आप पछताओगे कि आपने अपने बच्चों को नशा क्यों करने दिया! क्यों नहीं उसका नशा बंद करवाया! क्योंकि नशे ने एक दिन अपना रंग दिखा देना है कि वो जो नशे की डोज देता है वो कुछ दिन अपना असर करती है लेकिन कुछ दिनों बाद उसका असर होना बंद हो जाता है और फिर वो डोज बढ़ानी पड़ती है तथा एक दिन ऐसा आता है कि उनको नशा नहीं होता। लेकिन जैसे ही वो नशा ना लिया तो ऐसे तड़पते हैं जैसे बिन पानी के मछली। तो भाई! नशे मत करो, ये तबाही, बर्बादी का मंजर दिखा देते हैं। शरीर को ये बिल्कुल खत्म कर देते हैं, नशे के सहारे ही शरीर चलता है और एक दिन खत्म हो जाता है। लोग कहते हैं कि मांस में ताकत होती है तो ये उनका भ्रम है। हाथी, घोड़ा, ऊंट, बैल, गैंडा ये आज आधुनिक युग में पावर के प्रतीक हैं लेकिन इनमें से कोई भी मांस खाने वाला नहीं है। ये सब फिजूल की बातें हैं। सार्इंटिस्टों ने भी बताया कि हमारा शरीर शाकाहारी है।

‘मांस मछुरिया खात है, सुरा पान के हेत।
ते नर जड़ से जाएंगे, ज्यों मूरी का खेत। ’

जैसे गाजर-मूली निकालो तो बाद में क्या शेष रह जाता है, कुछ भी नहीं, सिर्फ गड्ढा रह जाता है। जो ये काम करते हैं वो भी जड़ से खत्म हो जाते हैं, नरकों में पक्का अड्डा हो जाता है। ऐसे लोग तड़पते रहते हैं, भयानक कष्टों का सामना करते रहते हैं। तो भाई! कभी मांस-अण्डा ना खाओ, नशे ना करो, ये दु:खदायक हैं, परेशानी देने वाले हैं। इस बारे में लिखा बताया है:-

है इंसाफ दरगाह के अंदर होना, इस बात को रख ध्यान अंदर।
स्वास-स्वास का वहां हिसाब होगा, कर्म जो आपने किए जहान अंदर।
सजा पापियों को मिले बहुत भारी, धर्मीं जाते स्वर्ग स्थान अंदर।
बिशनदास संवार लै जन्म अपना, नाम जपकर शरीर इन्सान अंदर।

नशे छोड़ो, ऐसा खाना छोड़ो, जिससे आपके अंदर से दया-रहम खत्म हो रहे हैं। इन्हें छोड़ने से ही आप मालिक की दया-मेहर, रहमत से मालामाल होंगे। पीर-फकीर हर किसी को नवाजते हैं, प्रेम करते हैं। अपनी तरफ से हर ऐसा कर्म करते हैं जिससे सामने वाले को सुख मिले। लेकिन उसकी कद्र पाके अगर कोई सुमिरन कर ले तो वो मालिक को बहुत जल्दी हासिल कर सकता है। अगर वहीं तक सीमित रह जाए तो मालिक के नूरी स्वरूप को हासिल नहीं कर पाता, ये भी अटल सच्चाई है। तो भाई! सुमिरन अति जरूरी है मन पर नकेल डालने के लिए।

वरना बाहरी कपड़ों से, बाहरी दिखावे से, सिर्फ लोगों के सामने बातें करने से आप पूर्णत: भक्त नहीं बन पाते। आपके अंदर जब खुद शांति नहीं तो दूसरों को क्या शांति दे दोगे। पहले अपने अंदर आत्मिक-शांति, आत्मबल लाओ जो राम-नाम के सुमिरन से आएगा। सच्ची लगन से, सच्ची तड़प से सुमिरन करो। अपनी मजबूरी समझ कर नहीं कि दस मिनट बैठ गए और कहने लगे कि मैंने तो कर लिया सुमिरन। उसका कुछ न कुछ तो फल है लेकिन वो बात नहीं बनती। सच्ची लगन से, तड़प से सुमिरन करो तो फल ज्यादा मिलेगा और मालिक की दया-मेहर, रहमत के काबिल आप जरूर बन पाएंगे।
भजन में आगे आया:-

क्यों करता है मेरा-मेरा, कुछ भी नहीं इसमें तेरा,
कुछ भी नहीं इसमें तेरा। दो दिन का यहां बसेरा भाई,
फिर जंगल में डेरा भाई, जन्म सफल….

इन्सान मैं-मेरी के फेर में फंसा हुआ है। जिसे भी देखो यही कहता है कि ये मेरा है, मैं इसे अपना बना लूं, और अपना हो जाए और मेरा बन जाए। इस मैं-मेरी ने इन्सान का बुरा हाल कर रखा है। अगर मैं पूरी होती है तो सारे अच्छे हैं, अगर मैं पूरी नहीं होती तो सारे गंदे हैं। ये मैं, ये खुदी सबको ले डूबती है। अगर दीनता, नम्रता रखो तो फायदा है वरना मैं तो ऐसी है जैसे रूई में लपेटी आग हाथ में रखी हो। कितनी देर उस दहकते हुए अंगारे को रूई में लपेटकर हाथ पर रखकर अपने हाथ को बचाओगे, मुठ््ठी बंद है खोलें नहीं तो कुछ ही सैकिंडों में वो रूई जल जाएगी और आपका हाथ भी जल जाएगा। वैसे ही मैं-मेरी है। जिसने भी समाज, दुनिया में अहंकार किया उसका सर्वनाश हो गया।

हैरानी ये होती है कि ये मैं-मेरी के बारे में पढ़कर भी इन्सान इससे बाज नहीं आते। जैसे रावण की मिसाल है। रावण चारों वेदों का टीकाकार पंडित था, चारों वेदों पर उसने टीका-टिप्पणी की थी, फिर भी उसे अहंकार आ गया। इतिहास गवाह है कि जिसने भी अहंकार किया, वो दुनिया में बुराई का प्रतीक बनकर रह गया। इन्सान के अंदर मैं यानि अहंकार कभी नहीं आना चाहिए। अगर आप मालिक से दया-मेहर, रहमत की उम्मीद रखते हैं तो वो अहंकार से हासिल नहीं कर सकते। दीनता से, नम्रता से, मिठास से उससे मांगो पर दिल में भी मिठास होनी चाहिए। ये नहीं कि जुबां से हां जी, हां जी और अंदर यह कि ये मरता क्यों नहीं, इसका बेड़ा क्यों नहीं बैठता। क्योंकि आज दोगले इन्सानों की कमी नहीं है। जो दिखने में कुछ और वास्तव में कुछ और होते हैं। आपको 1982 के समय की एक बात बताते हैं कि कॉलेज में एक शरारती सज्जन थे। उनकी क्लास में उनके कोई प्रोफेसर आए। उस सज्जन ने उनके पैरों को हाथ लगाया और प्रोफेसर ने उस सज्जन को आशीर्वाद दिया तथा चले गए।

हमारे साथ हमारे दो-चार साथी और भी थे, सभी हैरान हुए। वो कहने लगे कि भाई, तू कब से भक्त बन गया! तू तो बड़ा ही अजीबो-गरीब इन्सान है और तू भी पांवों पर हाथ लगाता है! वो सज्जन कहने लगा कि सच बताऊं, जब मैं पैरों को हाथ लगा रहा था तो ये कह कर लगा रहा था कि तेरा बेड़ा क्यों नहीं गर्क होता? सर जी! आप कब मरोगे और बाहर से हाथ जोड़े हुए थे। तब से अब तक क्या बुराई ने तरक्की नहीं की होगी। बहुत तरक्की की होगी। आज तो दुआ भी मंदिर, मस्जिद में ये ही मांगते होंगे। अंदर क्या है किसी को क्या पता। क्या पता कि वो मंदिर में जाकर नारियल किसके लिए फोड़ रहे हैं। इस बात का किसी को कोई पता नहीं, कोई विश्वास नहीं। सिर्फ अल्लाह, राम पर विश्वास है। वरना किसी का कोई पता नहीं कि वो वास्तविक में क्या कर रहे हैं और उनके अंदर क्या चल रहा है। वो मालिक तो जानता है। जिनका वो मालिक है वो जाने उनका काम जाने।

तो मैं-मेरी मत करो, अहंकार मत करो। इसलिए आपको कहते हैं कि आप किसी का बाहरी रूप देखकर किसी के झांसे में मत आइए। ये मत सोचिए कि वो मालिक तक पहुंच चुका है। ये भ्रम है। इस कलियुग में कुछ कहा नहीं जा सकता, कौन कब गिरगिट की तरह रंग बदल ले। भरोसा है तो सिर्फ उस अल्लाह, राम वाहेगुरु, सतगुरु का है। वो ही एक ऐसा है जो कभी रंग नहीं बदलता। जो उनके संत स्वरूप होते हैं उनको भी कभी रंग बदलते नहीं देखा और न ही भगवान को। बाकी किसी का कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि ये कलियुग है। यहां मन की इच्छा पूरी है तो सब कुछ है और अगर मन की इच्छा पूरी नहीं तो तू कौन और मैं कौन। हां में हां मिला दो कि वाह भई वाह, बहुत बढ़िया, तू बहुत अच्छा है, शाबास! आप तो ऐसा कह सकते हैं लेकिन फकीर तो किसी को शाबास नहीं कह सकते जो बुरे कर्म करते हैं। अगर फकीर ऐसा कहेंगे तो फकीरों में और इन्सानों में क्या फर्क रह गया। तुम बुराई करोगे तो वो तो रोकेगा कि ये गलत है और फिर वो कड़वा लगेगा ही लगेगा। तो भाई, संतों का काम यही है कि मैं-मेरी को छोड़ दो।

चाखा चाहे प्रेम रस, राखा चाहे मान।
एक म्यान में दो खड्ग, देखा सुना ना कान।

प्रभु-परमात्मा के प्रेम को पाना चाहता है, अमृत-आबोहयात्, हरि रस को पाना चाहता है, परम सुख, परमानंद, परम लज्जत को पाना चाहता है और दूसरी तरफ अहंकार रखता है तो ये ऐसे है जैसे एक म्यान में दो तलवारें नहीं आती वैसे ही एक शरीर में झूठा अहंकार और मालिक का प्यार-मोहब्बत एक साथ नहीं रह सकते। जहां मालिक का प्यार है, उसकी मोहब्बत है, वहां अहंकार नाम की चीज नहीं और जहां अहंकार है, वहां मालिक का प्यार नहीं। इसलिए भाई! खुदी को, अहंकार को मिटा डालो। यह बड़ा पर्दा है और इसी पर्दे में छिपा हुआ है आपका ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम।

जन्म हाथ से जब जाएगा, बार बार ना फिर आएगा,
बार-बार ना फिर आएगा। समय का लाभ उठाए भाई,
गुजर गया ना आए भाई, जन्म सफल…

जो स्वास आपके जीवन में से गुजर रहे हैं वो आपकी कुल आयु में से कम हो रहे हैं। जैसे मान लो आपकी उम्र सौ साल है, वैसे है तो असंभव पर फिर भी मान लीजिए, उसमें से 50 साल आपके गुजर गए हैं तो आप ये मत सोचो कि आप बड़े हो गए हो, आप ये सोचो कि आप 50 साल छोटे हो गए हैं। इसी तरह जो सैकिंड, मिनट, घंटा, महीना, साल आपकी उम्र में से गुजर रहा है, वो आपको आपकी मौत के करीब ले जा रहा है। जीवन छोटा है या लंबा है, इस फेर में मत पड़ो। जो जीवन वर्तमान में जी रहे हो वो कैसा है, उसमें जो गल्तियां हैं, उसमें जो आपके अंदर गलत भावनाएं हैं उनको मिटा डालो। गुजरे हुए को रोओ मत।

वर्तमान में जो जीवन है, उसमें से अगर आप अपनी गल्तियों को निकालोगे तो आपके आने वाला समय जरूर अच्छा होगा। क्योंकि इस समय को कुछ सुधारने से ही आने वाला समय सुधरेगा। इस समय का सदुपयोग करोगे यानि अल्लाह, वाहेगुरु, राम का नाम जपोगे तो आने वाला समय आपके लिए बहुत ही आनंदमय बन जाएगा, खुशियां देने वाला बन जाएगा। तो समय की कद्र करो। समय को बर्बाद मत करो। जो समय की कद्र नहीं करते, आलस्य में बर्बाद करते चले जाते हैं, वो जीवन में कभी सफल नहीं हो सकते। समय की जो कद्र करते हैं, समय के जो साथ-साथ चलते हैं, वो दुनिया में भी और रूहानियत में भी हमेशा तरक्की करते चले जाते हैं।

आप एक समय सारणी बनाइए। जैसे सोने का, खाने का, रफा-हाजत जाने का टाईम टेबल है। ये नहीं कि आलस्य करते रहिए। ऐसा करना बिल्कुल गलत है। ये आपका मन आपको ललचा रहा है कि और थोड़ी देर पड़ा रह क्या फर्क पड़ता है और आपका सुमिरन का समय चला जाए। आप एक झटके से खड़े हो जाइए, रफा-हाजत जाने के बाद हाथ-मुंह धो लीजिए और बैठ जाइए मालिक की याद में। आधा घंटा, पौना घंटा लगाइए। एक-दो दिन परेशानी आएगी लेकिन फिर आदत बन जाएगी। अच्छे-नेक कर्म करते जाओ तो उसमें भी आलस्य मत करो, उसमें भी एक-दो मिनट लेट मत करो। अगर हाथ-पांव चलाओगे तो ही कहीं न कहीं अटकेगा और अगर चलाओगे ही नहीं तो कहां अटकेगा। तो भाई! कर्म करो। आप खेती करते हैं, क्या आपने किसी जमींदार को देखा है कमरे में सो कर सफलता हासिल करते हुए? कितनी मेहनत करनी पड़ती है, इसी परिश्रम की वजह से आज लोग विश्व में चोटी पर पहुंच चुके हैं, धनवान लोगों में उनका स्थान है क्योंकि उन्होंने मेहनत की, शेख-चिल्ली की तरह सपने नहीं देखे।

एक बार शेख-चिल्ली कहीं पर खड़ा था। कोई साहूकार आया और कहने लगा कि भाई, ये मटका है, ये फलां जगह पहुंचा दे तुझे पच्चीस पैसे दूंगा। तब पच्चीस पैसे का बहुत मोल था। काफी मोटा-तगड़ा इन्सान था, उसके शरीर पर क्या असर होना था। उसने वो मटका सिर पर उठाया और चल दिया। लेकिन अंदर मीटिंग शुरू हो गई। वो खुली आंखों से सपना देखता जा रहा था लेकिन आज तो इन्सान बंद आंखों से सपना देखता है। सपना देखना शुरू कर दिया कि चवन्नी के बहुत सारे अंडे खरीद लिए, उन अंडों से बहुत सारे चूजे निकल आए, मुर्गियां हो गईं, अंडे बेचने शुरू कर दिए, चूजे बेचने शुरू कर दिए, बहुत कारोबार हो गया। पर सोचने लगा कि नहीं, बात बनी नहीं। सारी मुर्गियां बेच दी। फिर गऊ ले आया, बछड़े, बछड़ियां पैदा हो गए। गऊशाला खुल गई, दूध बेचने लगा, बछड़े बेचने लगा, बहुत बड़ा कारोबार हो गया, वैसे तो पैदल चल रहा है सिर पर मटका लेकर। कारोबार बढ़ गया फिर कहता कि बढ़िया सा एक घर बनना चाहिए।

पल में महल बन गया, कौन सा कोई मिस्त्री बुलाने थे। फिर कहता कि सब कुछ हो गया अब शादी होनी चाहिए, शादी हो गई, बाल-बच्चे भी हो गए। एक चारपाई पर लेटा हुआ है तो ख्याल आता है कि यार! तेरे पास सब कुछ है, तेरे घरवाली औरत तेरे से लड़ती रहती है, मजे वाली बात नहीं है। तेरा रौब भी तो किसी पर होना चाहिए। तेरी डांट भी कोई सहन करने वाला होना चाहिए। डांट मार कर देखता हूँ। तो उसने सोचा कि पहले घर से शुरू करते हैं। उसकी घरवाली खाना लेकर आई थी तो गुस्से में आ गया और कहने लगा कि मैं नहीं खाना खाऊंगा। उसकी घर वाली भी कहने लगी कि निगल लो अगर निगलना है तो। क्यों, घरवाली भी तो वैसी ही होगी जैसे वो विचारों का स्वामी होगा। सपनों में तो ऐसी ही आएगी। उसने कहा खाना है तो खा ले वरना ना खा।

उसने पांव चलाते हुए कहा कि ले जा अपना भोजन, थाली बिखर गई लेकिन असल में क्या हुआ कि चलते-चलते टांग चला दी और सिर पर जो मटका था वह धड़ाम से नीचे गिरा और फूट गया। जब इधर-उधर देखा तो कुछ भी नहीं। वो साहूकार कहने लगा, अरे बेवकूफ! इतना नुकसान कर दिया। तूने मेरा मटका तोड़ दिया। तो शेख चिल्ली कहने लगा, अरे रहने दे, रहने दे, तेरा तो मटका ही टूटा है, मेरा तो बना-बनाया घर-बार उजड़ गया। अभी तक तो इधर था, पता नहीं कहां चला गया। तो कई सपनों की खाते हैं। सपने लेते रहते हैं, करना-कराना कुछ है नहीं। सपने इतने लंबे हैं अगर सुनो तो मुंह खुला का खुला रह जाता है। बेपरवाह जी के वचन हैं कि ‘सपने दे पुत-पोते कदे देखे नहीं हल वाहुंदे’। तो भाई! सपनों से नहीं, कर्म से कुछ होता है। हकीकत में कुछ करोगे तभी फायदा होगा, तभी कुछ हासिल होगा।

तो गुजरे हुए समय को रोना ये एक बहाना है। अरे! जो गुजर गया सो गुजर गया, जो समय तेरा तेरे पास है अब क्यों गुजरने दे रहा है! अगर वाकई तेरे में कोई ऐसा गुण है तो समय को मत गुजरने दे। तो भाई! गुण जरूरी है। गुण से मतलब कि आप भक्ति करो, समय गुजरने मत दो। आप सोचते हैं कि बुजुर्ग हो गया, नाम पहले क्यों नहीं लिया। चलो पहले नहीं लिया उसको रोने से तो कुछ हासिल होने वाला नहीं है। जो अब ले गया है तो कम से कम अब तो मालिक की याद में लगा ले। समय और समुद्र की लहर कभी किसी के लिए रुकते नहीं, वो तो चलते चले जाते हंै। इसलिए समय की कद्र करो, अच्छे-नेक कर्म करो, मेहनत की कमाई करो और प्रभु के नाम का सुमिरन करो।
भजन के आखिर में आया:-

एक भी स्वास ना बृथा जाए, स्वास-स्वास में नाम ध्याए,
स्वास-स्वास में नाम ध्याए। ‘शाह सतनाम जी’ तुझे पुकारें भाई,
पूंजी जुए हारें भाई, जन्म सफल…

इस बारे में लिखा-बताया है-
श्री गुरु रामदास जी फरमाते हैं कि बैठते, उठते, खड़े, रास्ते में चलते भी आप मालिक को याद करते रहो। सतगुरु वचन है और वचन ही सतगुरु है, जिसके द्वारा वो मुक्ति का रास्ता दर्शा देंगे। नाम ही सब कुछ है और नाम से ही सब कुछ है। जिन्होंने नाम को नहीं जाना या उसकी प्राप्ति नहीं की, उन्होंने कुछ नहीं जाना। वो जुआरिए की तरह दोनों हाथ खाली पल्ले झाड़ कर चले गए और दुनिया में अपनी स्वासों रूपी पूंजी बर्बाद कर गए।

‘कहि कबीर किछु गुनु बीचारि।। चले जुआरी दुइ हथ झारि।।’

तो भजन के आखिर में आया-‘एक भी स्वास ना वृथा जाए’, एक भी स्वास को बर्बाद मत करो। एक स्वास की तो छोड़िए, आज तो दिनों के दिन बर्बाद हो रहे हैं। किसी को कोई पता नहीं क्या हो रहा है। आप जरा सोच कर देखिए कि आप जो समय गुजार रहे हो क्या आप अपने मुर्शिदे-कामिल के वचनों पर अमल करते हैं जबकि उन्होंने तो कहा कि एक भी स्वास वृथा (व्यर्थ) नहीं जाना चाहिए। आप अपने जीवन में निगाह मार कर देखिए कि आप 24 घंटे में कितना समय, कितने स्वास मालिक की याद में लगाते हैं। अगर कोई इन्सान 24 घंटे में से आधा घंटा भी लगा देता है तो क्या कहना।

आधा घंटा सुबह-शाम मालिक की याद में लगाने वाले भी हैं, दो-दो, तीन-तीन घंटे भी मालिक की याद में लगाने वाले हैं। पर वो सामने नहीं आते और न ही वो शोर मचाते हैं। उनमें आपको कहीं भी बड़बोलापन नजर नहीं आएगा। ‘थोथा चना बाजे घना’ जो जितना अंदर से खाली है वो उतनी ही ज्यादा आवाज निकालेगा और जो जितना अंदर से भरा हुआ है उतना हजम कर जाएगा। तो भाई! बेपरवाह जी के ये वचन हैं कि अपना जीवन जो गुजर रहा है उसमें एकांत में बैठो और देखो कि आप क्या कर रहे हैं, कैसे समय गुजर रहा है, इसमें क्या-क्या चर्चा होती है, क्या-क्या बातें होती हैं, ये सोच कर देखिए। क्या आप दुनियावी धंधों में नहीं फंसे हुए हैं? सारा दिन काम-धंधा करते रहते हैं और फिर चुगली-निंदा, बुराइयां क्या इसके अलावा भी आप कुछ करते हैं, ये सोच कर देखिए।

कभी अल्लाह, वाहेगुरु की याद, भक्ति-इबादत करते हैं तो आप वाकई भाग्यशाली हैं। अगर नहीं करते तो भाग्यशाली बन जाओ, मालिक का नाम जपकर, सुमिरन करके। क्योंकि सुमिरन से ही आपके विचार बदलेंगे, आपके अंदर अच्छे-नेक विचार आएंगे। मालिक की याद के बिना जुए की तरह सब कुछ हारते जा रहे हो। सुमिरन करो, भक्ति-इबादत करो तो मालिक की दया-मेहर, रहमत के काबिल बन सकते हो, उसकी दया-दृष्टि आप पर बरसेगी और आप दोनों जहान की खुशियां इसी जहान में हासिल कर सकते हो।

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