‘वरी! तेरी अर्जी लिखवाएंगे।’ -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
प्रेमी दरबारा सिंह इन्सां पुत्र सचखण्डवासी स. हरदम सिंह उर्फ हाथी राम गांव जण्डवाला जाटां नजदीक चोरमार (सरसा) हाल आबाद शास्त्री नगर नई दिल्ली-52 से परम पूजनीय परम पिता बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के अपार रहमतों भरे करिश्में का वर्णन इस प्रकार करता है:-
प्रेमी दरबारा सिंह जी लिखते हैं कि मेरे बापू स. हरदम सिंह जी, लेकिन यहां पर उन्हें हाथी राम जी के नाम से ब्यान करेंगे, क्योंकि पूजनीय परमपिता बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज उन्हें जण्ड का हाथी और परम पूजनीय परमपिता शााह सतनाम जी महाराज हाथी राम नाम से पुकारा करते थे। वह शुरू से ही धार्मिक प्रकृति के थे। परन्तु पहले वे मढ़ी-मसाणों पर कड़ाही करना इत्यादि ऐसी जड़-पूजा में भारी विश्वास रखते थे।
Also Read :-
- सतगुरु जी ने अपने शिष्यों की मांग पूरी की
- दातार की रहमत से बेटे की मुराद हुई पूरी
- सतगुरु जी ने अपने शिष्य व उसके पिता की मदद की
- सतगुरु जी ने बकरों के बहाने पोते बख्शे
सन् 1955 में एक बार परम पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज का हमारे नजदीकी गांव चोरमार में सत्संग हुआ तो मेरे बापू जी भी सत्संग सुनने चले गए। क्योंकि हमारे गांवों में जब भी कोई महात्मा जन कथा-वार्ता आदि करने आता था तो वे सुनने जरूर पहुंचते थे। बापू जी ने पूजनीय बेपरवाह जी के बहुत नजदीक से दर्शन किए और सरल सी सिंधी भाषा में ठोस सच्चे वचन सुने तो सच्चे दिल से अपना पीर, गुरु, मुर्शिद मान कर पूज्य बेपरवाह जी से ‘नाम’ शब्द ले लिया और उसी दिन से पूज्य बेपरवाह जी के साथ लग लिए यानि जहां भी सत्संग होता वहीं पहुंच जाते।
प्रेमी जी लिखते हैं कि उन दिनों हमारे घर बहुत ज्यादा गरीबी थी। जमीन तो हमारे पास तब भी काफी थी, लेकिन लगभग सारी मारू (बरानी) जमीन थी। यानि बरसात अच्छी हो जाती तो कुछ फसल हो जाती, वैसे आमतौर पर सूखा उन दिनों ज्यादा पड़ता था। इस कारण फसल न के बराबर ही होती थी और कोई कारोबार भी नहीं था। हम उस समय बच्चे थे। घर में दो पशु थे और उन दोनों की अपनी अलग ही पहचान थी। एक थी ऊंटनी जो एक टांग से लंगड़ी थी और एक थी बकरी जिसका एक ही थन था। एक दिन गरीबी की हालत से मजबूर होकर मेरे बापू ने पूजनीय मुर्शिद कामिल के पवित्र चरण-कमलों में अर्ज कर दी, ‘सार्इं जी! हमारे परिवार पर बहुत गरीबी है, दया-मेहर करो जी।’ इस पर सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, ‘भाई! हम तो राम-नाम का डंका बजाते हैं और रूहों को नाम देकर चौरासी की जेल से निकालते हैं।’
मेरे बापू ने फिर अर्ज कर दी, सार्इं जी! आप से ना मांगें तो फिर किस से मांगें। मेरे बापू की यह हार्दिक पुकार सुनकर दया के सागर सर्व-सामर्थ पूजनीय बेपरवाह जी ने वचन फरमाया, ‘तेरी अर्जी लिखवाएंगे।’ बापू जी बेहद ही साधारण व सीधे-सादे स्वभाव के इन्सान थे। उन्होंने समझा कि आश्रम के किसी जिम्मेदार भाई के पास दर्ज करवानी होगी मेरी यह अर्ज, इसलिए क्यों न मैं खुद उनके पास अपना नाम-पता आदि लिखवा दूं।
यह सोच कर मेरे बापू जी उस समय के एक जिम्मेवार सेवादार भाई के पास अपना नाम लिखवाने के लिए चले गए और उनसे विनती की कि ऐसे-ऐसे पूज्य सार्इं जी से बात हुई है और उन्होंने मेरी अर्जी लिखवाने का वचन फरमाया है और मैं अपनी अर्जी लिखवाने खुद ही चला आया हूं। लेकिन उस सेवादार भाई ने अर्जी लिखने से इन्कार करते हुए कहा कि अर्जी लिखने की जरूरत नहीं है। उस जिम्मेवार सेवादार की बात मेरे बापू ने बतौर शिकायत पूजनीय शहनशाह जी से जा कही कि फलां सेवादार मेरी अर्जी नहीं लिखता जी! सर्व-सामर्थ पूजनीय बेपरवाह जी ने वचन फरमाया, ‘भाई! जो वचन निकल गया, यानि तेरी अर्जी तो लिखी गई।’
पूज्य बेपरवाह जी का सत्संग जहां भी होता मेरे बापू जी वहां जरूर पहुंचते। पूज्य बेपरवाह जी ने उन्हें बेपनाह प्यार बख्शा। वे शाही हजूरी में मस्ती में, जोश में खूब नाचते। यही नहीं, नाचते हुए एक टांग पर ऊंची छल्लांग लगा दिया करते। शहनशाह जी ने एक दिन अपनी मस्ती में आकर वचन फरमाया, ‘भाई! ये जण्ड का हाथी है।’ पूज्य बेपरवाह जी उसी दिन से उन्हें ‘हाथी’ कहने लगे और यहीं से उनका नाम ‘हाथी राम’ पड़ गया।
एक दिन पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज डेरा सच्चा सौदा निर्भयपुर धाम चोरमार में पधारे। वहां पर पूज्य बेपरवाह जी ने बापू जी को घुटनों तक एक बहुत शानदार पैंट, एक जॉकेट व एक बहुत ही खूबसूरत टोपा जिन पर सुनहरी सितारे लगे हुए थे, पहनाते हुए हुक्म फरमाया कि ‘अपने साथ एक साधु ले जा और अपने गांव में डेरे के प्याज बेच कर आओ।’ अपने मुर्शिदे-कामिल के हुक्मानुसार मेरे बापू जी ने प्याजों का टोकरा सिर पर रखकर गांव में घर-घर जाकर, ऊंची आवाज में प्याज ले लो, सच्चे सौदे के प्याज ले लो, बोलकर प्याज बेचे। यह देख कर हमारे सगे, परिवार-जनों, भाई-बंधुओं ने इस बात का बहुत मजाक उड़ाया और यहां तक भी कहने में संकोच नहीं किया कि ‘अब यह भूखा मरेगा।’
हमारा सारा परिवार पहले मढ़ी-मसाणी को पूजता था। मेरे बापू जी ने नाम-शब्द ले लिया और बाकी परिवार वालों से भी कहता कि सच्चा सौदा से (पूज्य बेपरवाह जी से) नाम-शब्द ले लो और अब ये मढ़ियां पूजना छोड़ दो। इस बात पर हमारे परिवार के सब लोग मेरे बापू के विरुद्ध थे और उनका बहुत विरोध, गुस्सा भी सहना पड़ा। समय गुजरता गया और पूज्य सतगुरु जी की दया-मेहर से हमारे दिन फिरने लगे। यानि पूजनीय बेपरवाह जी ने मेरे बापू जी की अर्ज, वो मांग स्वीकार कर ली। दिन-प्रतिदिन हमारा कारोबार (खेतीबाड़ी का कार्य) अच्छा चलने लगा। हमारे परिवार में, गांव, समाज में मान-सम्मान बढ़ा। पहले कोई पूछा भी नहीं करता था, लेकिन नाम-शब्द लेने के बाद लोगों में हमारी मान-प्रतिष्ठा बढ़ी और यह देखकर हमारे सगे-सम्बंधियों ने भी पूज्य बेपरवाह जी से नाम शब्द ले लिया तथा गांव के अन्य लोग व आस-पास के बहुत से लोगों ने नाम-शब्द ले लिया।
इधर हमारा कारोबार भी दिन-प्रतिदिन और बढ़ता गया और हम तरक्की करने लगे। जिस चीज को भी हमारे बापू जी हाथ डालते वही चीज हमारे लिए सोना साबित होने लगी। इसी दौरान हमने नया हिन्दुस्तान ट्रैक्टर भी खरीद लिया। उस समय परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज दूसरी पातशाही के रूप में विराजमान हो चुके थे। मेरे बापू जी ट्रैक्टर डेरा सच्चा सौदा दरबार में पूजनीय परमपिता जी की पावन दृष्टि डलवाने हेतु ले गए। बार-बार विनती करने पर पूजनीय परमपिता जी ट्रैक्टर पर विराजमान हुए और चला कर भी देखा। इसके बाद तो मानो परिवार पर धन की वर्षा ही शुरू हो गई। हमें खुद ही पता नहीं चलता था कि इतना धन कहां से आ रहा है। पूजनीय बेपरवाह जी की कृपा से हम कुछ दिनों में ही मालामाल हो गए। इसी दरमियान हम लोग (मैं और मेरा भाई) भी जवान हो गए।
हमने वर्कशॉप पर काम सीख लिया। जब मौका मिलता दरबार में भी कभी सेवा से पीछे नहीं हटे। धीरे-धीरे हमने दिल्ली में कुछ जगह लेकर वहां पर अपनी वर्कशॉप स्थापित कर ली। वर्कशॉप का काम भी बहुत जोर से चला। एक समय था जब हमारे पास फूटी कौड़ी नहीं थी, जमीन की पैदावार बारिश पर निर्भर थी। लेकिन इस समय पूज्य गुरु जी की रहमत से, पूजनीय बेपरवाह जी के वचनानुसार, ‘अर्जी, मंजूर हो गई सतगुररु की सच्ची दरगाह में।
न जमीन-जायदाद की कमी है और न धन की। सब भाईयों की दिल्ली में अलग-अलग कोठियां हैं और धन-दौलत आदि किसी भी चीज की कमी नहीं है।
हमारे बुजुर्गाें ने जहां पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज से नाम-शब्द लिया था, वहीं हमने परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज से व हमारे बच्चों ने पूजनीय हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से नाम लिया हुआ है। इस तरह मालिक की कृपा से हमारा सारा परिवार डेरा सच्चा सौदा से जुड़ा हुआ है। पूज्य सतगुरु जी ने परिवार पर जो अपनी रहमत बख्शी है, उनका उपकार हम जन्मों-जन्मों तक भी कभी चुका नहीं पाएंगे।