पशुधन के लिए उभरता बड़ा खतरा -लंपी बीमारी
“हमने खबरों में सुना कि गऊओं को एक भयानक बीमारी लग गई है जिससे बहुत गऊएं मर रही हैं। हम सतगुरु जी से प्रार्थना करते हैं कि वो इस बीमारी की दवाई किसी डाक्टर के दिमाग में बता दें या अपनी ‘कृपा’ से गऊ माता को निरोग कर दें।
– पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (11वें शाही पत्र से संकलित)।
लंपी रोग से पशुओं में फैल रही एक भयावह बीमारी है। बीते कुछ सप्ताह में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अंडमान निकोबार व हरियाणा राज्यों में सैकड़ों पशु इसकी चपेट में आ चुके हैं। पशुओं में अधिकतर गाय इसकी शिकार हो रही हैं, बेशक भैंसों में भी इसके लक्षण देखने को मिल रहे हैं।
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उन राज्यों में समस्या और भी विकट होती जा रही है, जिन राज्यों में गौशालाएं बनी हुई हैं और बड़े स्तर पर गायों को वहां रखा जा रहा है। राजस्थान के 33 में से 20 जिले इसकी चपेट में हैं। वहीं हरियाणा के डबवाली क्षेत्र में भी कई गौशालाएं इस बीमारी के चलने वीरान होने की स्थिति में आ पहुंची हैं।
ग्लोबल अलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्युनाइजेशन (गावी) की रिपोर्ट कहती है कि लंपी त्वचा रोग कैप्रीपोक्स वायरस के कारण होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी दुनिया भर में पशुधन के लिए एक बड़ा उभरता हुआ खतरा है। लंपी का ओरिजन अफ्रीका बताया जाता है। 1929 में इसका पहला केस सामने आया था।
उल्लेखनीय है कि गायों व भैंसों में लंपी त्वचा रोग से पहले तेज बुखार आता है, इसके बाद उनके त्वचा पर चकत्ते पड़ जाते हैं। संक्रमित होने के बाद पशु खाना-पीना भी छोड़ देता है। पहले पशु की स्किन, फिर ब्लड और बाद में दूध पर असर पड़ता है। वायरस इतना खतरनाक है कि इंफेक्ट होने के 15 दिन के भीतर तड़प-तड़पकर गायों की मौत हो जाती है। हालांकि, लंपी वायरस से इंफेक्टेड पशु का दूध पीने से इंसान पर असर का कहीं कोई मामला सामने नहीं आया है।
पशुपालन विभाग सिरसा के उपनिदेशक डा. विद्या सागर बंसल का कहना है कि लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी है यह कैपरी पॉक्स वायरस द्वारा होती है। यह मक्खियों व मच्छरों के काटने से फैलती है। इस बीमारी में शुरू में दो-तीन दिन तक बुखार आता है तथा बाद में शरीर में सारी चमड़ी के ऊपर 2 से 5 सेंटीमीटर तक की गांठें बन जाती हैं, यह गांठें गोल व उभरी हुई होती हैं।
गांठे कभी-कभी मुंह में तथा श्वासनली में भी हो जाती हैं। इस बीमारी में पशु कमजोर व लिम्फनोडज बड़ी हो जाती है तथा पैरों पर सोजिश हो जाती है। दूध उत्पादकता कम हो जाती है। यही नहीं, कभी-कभी पशुओं में अबॉर्शन भी हो जाता है। उनका कहना है कि अमूमन पशु 2 से 3 सप्ताह के अंदर ठीक हो जाता है तथा इस रोग के फैलने की दर 10 से 20% है तथा इस रोग में मृत्यु दर लगभग 1 से 5% तक है।
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बरतें सावधानियां
- इस बीमारी से ग्रस्त पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए।
- जिस पशु के शरीर पर इस तरह की गांठें हो उस पशु को पशु बाड़े में अंदर नहीं रखना चाहिए।
- मक्खियों, मच्छरों व चिचड़ियों को नियन्त्रित करने के लिए उचित दवा का छिड़काव करना चाहिए।
- पशु मेला व पशु मंडियों के आयोजन को बंद कर देना चाहिए ताकि पशुओं के आवागमन पर रोक लग सके ।
- पशुबाड़ों में सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा पशुओं के नीचे जहां तक संभव हो सके, फर्श सूखा रखना चाहिए।
- पशुशाला / पशुबाडों की सफाई के लिए क्लोरोफॉर्म, फार्मेलिन, फिनॉल व सोडियम हाइपोक्लोराइट जैसे रसायनों का प्रयोग करना चाहिए।
रोग ग्रस्त पशु का उपचार
वायरल जनित बीमारी होने के कारण इसका कोई स्पेसिफिक उपचार नहीं है, बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखा जाता है तथा लक्षनानुसार पशु का इलाज किया जाता है। अगर पशु को बुखार है तो बुखार की दवाई, अगर पशु के दर्द है तो दर्द की दवाई तथा सोजिश है तो उसकी दवाई दी जाती है। चमड़ी के ऊपर गांठों पर एंटीसेप्टिक दवाई का लेप लगाना चाहिए। तरल व नरम भोजन खिलाना चाहिए तथा हरे चारे की मात्रा प्रचुर मात्रा में होनी चाहिए।
संक्रमित गाय-भैंस का दूध उबाल कर पीएं
डॉक्टरों के अनुसार, अभी तक की स्टडी में लंपी वायरस से इंफेक्टेड पशु का दूध पीने से इंसान पर असर का मामला सामने नहीं आया है। इसका बड़ा कारण है कि हम दूध को गर्म करके ही पीते हैं। गर्म करने पर दूध में मौजूद बैक्टीरिया व वायरस नष्ट हो जाते हैं। साथ ही ह्यूमन बॉडी में एक ऐसा एसिड होता है, जो खुद ही ऐसे वायरस को खत्म कर देता है। हालांकि बीमार पशु का दूध पीने पर बछड़े जरूर संक्रमित हो सकते हैं। वहीं इंसान भी बीमार पशु के सीधे संपर्क में आने से प्रभावित हो सकते हैं।
राष्टÑीय अश्व अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने तैयार की स्वदेशी वैक्सीन
इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के राष्टÑीय अश्व अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने लंपी रोग की रोकथाम के लिए स्वदेशी वैक्सीन तैयार की है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने 10 अगस्त को वैक्सीन लांच करते हुए कहा कि यह वैक्सीन जल्द पशुपालकों तक पहुंचाने की जरूरत है।
संस्थान के निदेशक यशपाल ने बताया कि इस बीमारी का पहला लक्षण ओडिशा में दिखा था। इसके बाद वर्ष 2019 में झारखंड के रांची में गायों में इसे देखा गया। उन्हीं दिनों पहला सैंपल लेकर संस्थान ने वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। उन्होंने बताया कि वैक्सीन की तकनीक निजी व सरकारी कंपनी को सौंपने का कार्य जल्द पूरा कर लिया जाएगा। वैक्सीन बनाने वाले राष्टÑीय अश्व अनुसंधान संस्थान हिसार के वैज्ञानिकों की टीम में नवीन कुमार, डा. संजय बरूआ व अमित कुमार शामिल हैं।