परिपक्वता जरूरी है सास बनने से पहले Maturity is necessary before becoming a mother-in-law
जिंदगी में एक ऐसा समय भी आता है जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और मां-बाप अपने सामाजिक उत्तरदायित्व पूरे करने के लिए उनका विवाह करने के बारे में सोचते हैं। ऐसे में लड़की अपना घर छोड़कर ससुराल चली जाती है तो परिवार में रिक्तता आ जाती है परन्तु इसके विपरीत लड़के के परिवार में नये मेहमान की वृद्धि हो जाती है।
नये मेहमान की वृद्धि के कारण घर के वातावरण में कुछ बदलाव आना जरूरी है क्योंकि नया मेहमान एक नए वातावरण से परिपक्व इंसान के रूप में जुड़ता है तो स्वाभाविक है कि कुछ बदलाव तो आएगा ही। ऐसे में यदि उस घर की पहली बहू यानी सास जिसका अब तक इस घर पर वर्चस्व रहा है, उसे अब कुछ अधिकार बांटने के लिए तैयार रहना चाहिए।
मां को बेटे की शादी करने से पूर्व स्वयं को मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार कर लेना चाहिए कि अब इस घरौंदे में एक नये सदस्य को भी अपने साथ रखना है। सामंजस्य हेतु कुछ बदलाव अपने आप में लाना आवश्यक है।
पिछले दिनों मैं बाजार गई तो कालेज के समय की एक अच्छी सहेली भावना से मुलाकात हो गई। उसके चेहरे से लग रहा था कि वह खुश नहीं है। कारण पूछने पर उसने अगले सप्ताह मेरे घर आने का वायदा किया। कुछ दिनों बाद वह घर आई तो मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर शुरू हुआ बातों का सिलसिला। बातों से पता चला कि उसका परिवार में सामंजस्य ठीक से नहीं बैठ पाया है। घर के सदस्य, विशेषकर सास उसके काम की प्रशंसा न करके सदा कुछ न कुछ कमी निकालती रहती है। सास द्वारा की गई बार-बार की आलोचना से परिवार के अन्य सदस्यों को भी आलोचना का मौका मिल जाता है। पति चाहकर भी उसको सहयोग नहीं दे पाते क्योंकि संयुक्त परिवार में रहते हुए पत्नी का चमचा कहलाया जाने का डर उन्हें सताता रहता है।
भावना बेचारी न तो अपनी पसंद का खाना बना पाती है, न ही रसोई और अपने घर को अपने अनुसार रख पाती है। विवाह के पांच वर्षों बाद भी उसे अपना ससुराल अपने घर की तरह नहीं लगता। न जाने भावना जैसी कितनी बहुएं अपनी इच्छाओं को दबा कर जीती रहती हैं। सास और परिवार के अन्य सदस्यों को नए मेहमान और उसकी इच्छाओं और अधिकारों का ध्यान रखना चाहिए। सास-बहू का ज्यादा समय एक जैसे कामों को निपटाते हुए बीतता है इसलिए सास को सास बनने से पूर्व अपने मन को समझा लेना चाहिए कि बहू को भी यही अधिकार हैं जो उनको प्राप्त हैं। घर में उनका वही स्थान है जितना उनका।
उन्हें निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए:-
- बहू को धीरे-धीरे अपने घर के सदस्यों की खाने-पीने की आदतों से अवगत करवाना चाहिए। यथासंभव उसकी मदद भी करनी चाहिए।
- घर के नियमों की जानकारी, जैसे सुबह कब उठना, दिनचर्या में क्या जरूरी है, उसे साथ-साथ प्रेमपूर्वक बताते रहना चाहिए।
- बहू की सहायता से रसोई घर के सामान को पुन: व्यवस्थित करना चाहिए जिससे बहू को भी वस्तुओं को यथास्थान पर रखने और प्रयोग करने में परेशानी न हो।
- घर कैसे साफ-सुथरा रखा जाये, इसकी जानकारी बहू को भी देनी चाहिए। घर की सज्जा के बारे में मिलकर सोचना चाहिए।
- संबंधियों के आने पर चाय-नाश्ता या खाना किस प्रकार का बनाया जाये, इस विषय पर भी एक-दूसरे की सलाह को महत्त्व दें।
- बहू के आते ही खुद को अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं करना चाहिए बल्कि घर की जिम्मेदारियां मिल जुल कर कैसे निभाई जायें, इस पर ध्यान देना चाहिए।
- बहू को भी कुछ खाली समय देकर उसकी रूचि अनुसार समय बिताने देना चाहिए। बहू के आने-जाने और घूमने पर अधिक पाबन्दी नहीं लगानी चाहिए।
- कभी कभी बहू को अपनी इच्छानुसार खाना बनाने की भी पूरी छूट होनी चाहिए। जहां सहायता की आवश्यकता हो, उसे पूरा सहयोग देना चाहिए।
- बहू द्वारा नई-नई स्वादिष्ट चीजें बनाने पर उसकी प्रशंसा करने में पीछे न रहें। यदि कभी उससे सीखना भी पड़े तो हिचक महसूस न करें।
- बहू को सीखने में पूरा सहयोग करें न कि उसका मजाक उड़ाएं कि वह अपने मायके से कुछ सीख कर नहीं आई क्योंकि सभी घरों में अपने स्वादानुसार भोजन बनता है।
- बहू की कुछ कमियों को नजरअंदाज भी करें। कुछ कमियों के बारे में साथ-साथ समझाते भी जाएं। तभी वह अपनी गलतियां सुधारेगी।
- बेटे की शादी से पूर्व हर मां को अपने एकाधिकार को अपनी बहू के साथ बांटने के लिए तैयार रहना चाहिए। यदि हर औरत बहू के आने से पूर्व इन सब बातों को ध्यान में रखे तो घर को और आसानी से चलाने में सहायता मिलेगी।
घर की जिम्मेदारियों में सबका सहयोग मिलने से घर की जिम्मेदारियां हंसते-हंसते पूरी हो जाएंगी।
-नीतू गुप्ता