Tobacco, gutkha, betel life endangered

तंबाकू, गुटखा, पान जोखिम में डाले जान
जोखिम में डाले जान Tobacco, gutkha, betel life endangered
तम्बाकू एक धीमा जहर है, जो सेवन करने वाले व्यक्ति को धीरे-धीरे करके मौत के मुँह में धकेलता रहता है, लेकिन फिर भी लोग बेपरवाह हो कर इसका इस्तेमाल किये जा रहे हैं। भारत में पूर्व के समय में भी हुक्का-चिल्लम, बीड़ी, खैनी आदि के द्वारा लोग नशा करते रहे हैं, किन्तु आज स्थिति कहीं ज्यादा विस्फोटक हो चुकी है।

अब तो जमाना एडवांस हो गया है और नशे करने के तरीके भी बदल गए हैं! बीड़ी की जगह ई-सिगरेट ने ले ली है तो हुक्का और चिल्लम की जगह स्मैक, ड्रग्स ने, और खैनी बन गया है गुटखा! तम्बाकू एक धीमा जहर है, जो सेवन करने वाले व्यक्ति को गंभीर बीमारियों की गिरफ्त में पहुंचा देता है।

तंबाकू की लगभग 65 तरह की किस्म बोयी जाती है, जिनसे व्यावसायिक तौर पर अधिकांशत: निकोटिना टुवैकम उगाया जाता है। उत्तरी भारत और अफगानिस्तान से आने वाला अधिकांशत: तंबाकू ‘निकोटिना रस्टिका किस्म का होता है। विश्वभर में, तंबाकू के बढ़ते उपयोग और उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव चिंता का कारण बन गए हैं। गैर-संचारी रोग (एनसीडी) जैसे कि हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह, पुरानी सांस की बीमारियां इत्यादि विश्व स्तर पर होने वाली मृत्यु का प्रमुख कारण हैं, जो कि तंबाकू के सेवन के साथ जुड़ी हैं। डब्ल्यूएचओ से प्रमाणित डेटा के अनुसार, विश्व में हर वर्ष 38 लाख लोग एनसीडी से मर जाते हैं तथा निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लगभग 25 प्रतिशत लोग एनसीडी से मौत का ग्रास बन जाते हैं।

डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, भारत में होने वाली मौतों का सामान्य कारण हृदय रोग और मधुमेह है। एनसीडी के अत्यधिक बोझ को तंबाकू के उपयोग को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सभी आयु वर्ग के लोगों को बहुत सारी बीमारियों से प्रभावित करने वाला मुख्य जोखिम का कारण तंबाकू हैं। डब्ल्यूएचओ डेटा द्वारा यह स्पष्ट होता है कि प्रतिवर्ष तंबाकू का सेवन करने वाले लगभग 6 लाख लोगों की मृत्यु होती है। तंबाकू के कारण हर छह सेकंड में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। भारत में सबसे डरावनी तस्वीर यह है कि यहां लगभग 35 प्रतिशत के आसपास वयस्क (47.9 प्रतिशत पुरुष और 20.3 प्रतिशत महिलाएं) किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं।

तंबाकू में मौजूद निकोटीन का सबसे शक्तिशाली प्रभाव इन्सान के व्यवहार पर पड़ता है। यह जहरीला पदार्थ नशे को पैदा करता है। तंबाकू पीने (धूम्रपान) के कारण और इसके अवशोषण के बाद, निकोटीन तेजी से मस्तिष्क में पहुंचता हैं तथा कुछ सेकंड के बाद, तुरंत मनोवैज्ञानिक गतिविधियाँ सक्रिय हो जाती हैं। इसके बाद यह स्थितियां और अत्यधिक प्रबल हो जाती हैं। निकोटीन मस्तिष्क में रिसेप्टर्स को बांधता हैं, जहां पर यह मस्तिष्क के चयापचय को प्रभावित करता है। निकोटीन अधिकतर पूरे शरीर, कंकाल मांसपेशियों में वितरित हो जाता है। व्यक्ति में नशे की अन्य आदतों वाले पदार्थों द्वारा गतिविधियों में सहनशीलता विकसित होती है, जो कार्बन मोनो आॅक्साइड रक्त में लेकर जाने वाली आॅक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है। यह सांस लेने में तकलीफ का कारण बनता है।

तंबाकू सेवन के घातक परिणाम

तंबाकू का सेवन विभिन्न तरह से किया जाता हैं जिसमें सिगरेट, बीड़ी, सिगार, हुक्का, सीसा, तंबाकू चबाना, क्रेटेक्स (लौंग सिगरेट), सुंघनी/नसवार व ई-सिगरेट शामिल है।  यह सारे विषैले पदार्थों को पैदा करता है। तंबाकू का विनिर्माण, पैकेजिंग और परिवहन भी पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण है। वहीं तंबाकू का सेवन श्वसन तंत्र के कैंसर, फेफड़े, संपूर्ण ऊपरी जठरांत्र संबंधी, यकृत (लीवर),अग्न्याशय, गुर्दा, मूत्राशय, मौखिक कैविटी (गुहा), नाक कैविटी (गुहा), गर्भाशय ग्रीवा आदि से समस्याओं से जुड़ा होता है। धुंआ रहित तंबाकू (तंबाकू, चबाना और सूंघनी/नसवार आदि) मौखिक कैविटी (गुहा) के कैंसर का प्रमुख कारण है।

हृदय रोग:

तंबाकू, हृदय की कोरोनरी वाहिकाओं को प्रभावित करता है, जिसकी वजह से प्रमुखत: हृदय में रक्त की आपूर्ति में कमी हो जाती है अथवा हृदय की मांसपेशियां समाप्त हो सकती हैं, जिसे इस्कीमिक या कोरोनरी हृदय रोग के नाम से जाना जाता है। यह हृदय में खिंचाव का कारण बनता है। धूम्रपान करने से उच्च कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप द्वारा कोरोनरी हृदय रोग (सीएचडी) जैसी बीमारियों के जोखिम का खतरा बढ़ जाता है।

श्वसन रोग:

धुम्रपान क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और वातस्फीति की समस्या पैदा करता है, वहीं अस्थमा के तीव्र हमलों के साथ जुड़ा है। इससे क्षय रोग/तपेदिक की बीमारी भी संभावित है।

गर्भावस्था पर प्रभाव:

धुम्रपान के प्रभाव से गर्भवती महिलाओं को कई तरह के विकार हो सकते हैं । गर्भावस्था के दौरान रक्त स्राव, अस्थानिक गर्भावस्था, गर्भस्राव/गर्भपात, बच्चे का समय से पहले जन्म, मृत जन्म, नाल/प्लेसेंटा की असामान्यताएं आदि।

अन्य दोष:

इसके सेवन से गुर्दों का खराब होना, आँखों में धब्बे बनना, दांतों का नुकसान होना, मधुमेह, आंत्र में सूजन का रोग आदि।

कहीं जिंदगी पर भारी न पड़ जाए पान खाने का शौक

पान भारत के इतिहास एवं परंपराओं से गहरे से जुड़ा है। राजा-महाराजाओं द्वारा खुद खाने के साथ-साथ दरबारियों को मान-सम्मान के रूप में पान दिया जाता था। लेकिन पान खाने का यह शौक कई बार महंगा भी पड़ जाता है, क्योंकि पान के अत्याधिक सेवन से जनित बीमारियां इन्सान को लाचार बना देती हैं और समय से पूर्व ही मौत के मुहाने तक खींच लाती हैं। पान बेशक कुछ मायनों में सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन पान का यह पत्ता कई बार नुकसानदायक भी साबित होता है। अधिक पान के पत्ते चबाने से हृदय गति, रक्तचाप, पसीना और शरीर के तापमान में वृद्धि हो सकती है । शोध के अनुसार, पान चबाने से एसोफैगल (खाद्य नली) और मुंह का कैंसर होने की आशंका हो सकती है।

अगर गर्भावस्था में पान के पत्तों का सेवन किया जाता है, तो यह भ्रूण और उसके विकास के लिए हानिकारक हो सकता है। अधिक मात्रा में पान के पत्तों का सेवन थायराइड की समस्या पैदा कर सकता है। तम्बाकू के साथ पान खाने वाले लोग प्राय: इसके व्यसनी हो जाते हैं। अधिक पान खाने के कारण बहुतों के दाँत खराब हो जाते हैं-उनमें तरह-तरह के रोग लग जाते हैं और मुँह से दुर्गंध आने लगती है। सुपारी के इस्तेमाल से हृदय की दर, दिल की धड़कन, संभव हृदय रोग, मुंह का ट्यूमर और मस्तिष्क के कैंसर की प्रबलता बढ़ जाती है।

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