‘सास’ शब्द अपने आप में जितना छोटा है उससे कहीं ज्यादा यह भय का पर्याय बन चुका है। सीधे-सरल शब्दों में तो इसकी परिभाषा बस इतनी सी है कि पति या पत्नी की मां सास कहलाती है।
यदि एक बहू को सास की विशेषताओं पर दस पंक्तियां लिखने के लिए कहा जाए तो उसके द्वारा लिखी गई छह पंक्तियों में सास की बुराई ही होगी। टीवी, सिनेमा और लोकगीतों में दिखाई जाने वाली सास की छवि ज्यादातर खलनायिका की सी होती है। सास का एक ही काम रह गया है कि सारे दिन वह बहू के खिलाफ साजिशें करती रहे।
यह बिल्कुल व्यक्तिगत अनुभव है। जरूरी नहीं दूसरों की कही-सुनी बातें या अनुभव हर किसी की सास पर लागू हों। कभी-कभी बहुओं को भी अपनी सास की स्थिति में खुद को रख कर निर्णय लेना चाहिए। हर इंसान में अच्छाई और बुराई होती है। सास भी तो सबसे पहले इंसान ही है। नई-नवेली बहुएं, जो पहले से ही सास के विषय में उल्टे-सीधे किस्से सुन कर आती हैं, ससुराल में कदम रखते ही उसी अनुभव से सास के साथ बुरा सलूक करना शुरू कर देती हैं।
मांओं के दिल पर भी बेटे का विवाह भारी पड़ता है। लड़के का जन्म हुआ नहीं कि दो-दो सपने हर मां की आंखों में बसने लगते हैं। पढ़-लिख कर बेटे को अच्छी नौकरी मिले, समाज में रुतबा मिले, शादी के बाद ऐसी लड़की बहू बन कर आए जो घर की देखभाल करे। उनका बुढ़ापा बेटे-बहू की देख-रेख में कटे। बूढ़े माता-पिता को अपने बेटे-बहू के अलावा कहीं हाथ नहीं फैलाना पड़े।
‘सास’ के रिश्ते में इतनी क्षमता है कि वह पूरे परिवार को खुशियों से भर दे। सास, समय और जरूरत के अनुसार बहू की मां, सहेली और गुरु भी हो सकती है। सख्त ‘गुरु’ की सी भूमिका अदा करती है सास।
हर लड़की शादी के बाद जिस परिवार में जाती है, वहां सास ही होती है जो नई बहू को अपने जीवन के रीति- रिवाजों, ऊंच-नीच व्यवहार से परिचय कराती है। नए जीवन की शुरूआत से ले कर, बहू जब मां बनती है, और एक दिन जब वह भी बेटे-बेटी की शादी करने जाती है, हर अवसर पर, सास ही साथ रहती है।
मोनिका कहती है, ‘मेरे लिए सास हमेशा प्रेरणा की स्रोत रही हैं। सच कहूं तो मुझे इस परिवार को कैसे संभालना है, यह सब उन्हीं ने सिखाया है। जितनी मुझे मेरी सास की जरूरत है, मेरे बच्चे भी अपनी दादी पर उतने ही निर्भर हैं।‘
ऐसे कई और उदाहरण मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि परिवार में सास का दर्जा किसी गुरु से कम नहीं है। बहू के पास अनुभवों के खजाने के रूप में सास मौजूद होती है।
अब यह तो बहू को तय करना है कि अपने परिवार और जीवन के अलग-अलग पहलुओं में अपनी सास के ज्ञान का वह कितना उपयोग कर पाती है।
-उषा जैन ‘शीरीं’
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