मालिक का हाथ तुम्हारे सिर पे है, तुम्हारा बाल बाँका नहीं हो सकता
मालिक का हाथ तुम्हारे सिर पे है, तुम्हारा बाल बाँका नहीं हो सकता
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
सत्संगियों के अनुभव
बहन...
जैसा सोचा, जैसा मांगा, वैसा ही मिला -सत्संगियों के अनुभव
जैसा सोचा, जैसा मांगा, वैसा ही मिला :सत्संगियों के अनुभव -पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी...
जो नाम तुम्हें दिया है, इसका भजन करो …सत्संगियों के अनुभव
जो नाम तुम्हें दिया है, इसका भजन करो ...सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
श्री राम इन्सां उर्फ सूबेदार पुत्र स....
हम आपके गांव में सत्संग करेंगे, पूरे लाम-लश्कर के साथ आएंगे। -सत्संगियों के अनुभव
‘हम आपके गांव में सत्संग करेंगे, पूरे लाम-लश्कर के साथ आएंगे। -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
बुजुर्ग प्रेमी मिस्त्री भंवरलाल...
तू तां उन्हां दे मुंह धोंदी ही नी थकेंगी -सत्संगियों के अनुभव
तू तां उन्हां दे मुंह धोंदी ही नी थकेंगी -सत्संगियों के अनुभव - पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने की अपार रहमत
प्रेमी...
Experiences of Satsangis: सतगुरु जी ने बकरों के बहाने पोते बख्शे
सत्संगियों के अनुभव Experiences of Satsangis पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
सतगुरु जी ने बकरों के बहाने पोते बख्शे Satguru spared grandchildren...
चल उठ भई! तुझे तो ड्यूटी पर टाईम से पहुंचना है
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम | सत्संगियों के अनुभव
मास्टर लीला कृष्ण उर्फ लीलाधर पुत्र श्री पुरुशोत्तम दास, नानक नगरी, मकान न.122, मोगा (पंजाब)। प्रेमी जी अपने पूजनीय सतगुरु परम संत शहनशाह मस्ताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्मे का इस प्रकार वर्णन करता है:-
बेपरवाह जी की रहमत से शिष्य की जान बची – सत्संगियों के अनुभव
बेपरवाह जी की रहमत से शिष्य की जान बची पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की रहमत
सत्संगियों के अनुभव
बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की खुद...
जेहड़ी सोचां ओही मन्न लैंदा…-सत्संगियों के अनुभव
जेहड़ी सोचां ओही मन्न लैंदा...
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत - सत्संगियों के अनुभव
सचखण्ड वासी पे्रमी यशपाल इन्सां रिटायर्ड एस...
सतगुरु जी ने अपने शिष्यों की मांग पूरी की
सन 1952 की बात है कि मेरे गांव के कुछ सत्संगी भाइयों ने डेरा सच्चा सौदा सरसा में पहुँच कर बेपरवाह मस्ताना जी के चरण-कमलों में विनती की कि शहनशाह जी हमारे गांव में सत्संग करो जी। बेपरवाह जी ने उनकी विनती मंजूर कर ली।














































































