पुत्र! बख्श दिया -सत्संगियों के अनुभव पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
माता प्रकाश इन्सां पत्नी श्री गुलजारी लाल, निवासी मंडी डबवाली जिला सरसा, पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की अपने पर हुई अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार ब्यान करती हैं:
सितम्बर 1959 की बात है। उन दिनों मुझे बुखार रहने लगा था। बिगड़ा हुआ बुखार टाइफाइड बन गया और शायद सही इलाज न हो पाने पर टाइफाइड और बिगड़ गया। जिस कारण हर समय करीब 100 डिग्री बुखार रहता था। कभी उतरता ही नहीं था और फिर टी.बी. की शिकायत भी हो गई। मैं बड़ी परेशान रहती। डॉक्टर बदल-बदल कर दवाई ली, इलाज करवाया, परन्तु कहीं से भी आराम नहीं मिल रहा था। कोई भी दवाई काम नहीं कर रही थी।
एक दिन एक डॉक्टर ने मेरा एक्स-रे देखकर कहा कि टी.बी. की शिकायत है। मांस, अंडा व मछली के तेल का सेवन करना पड़ेगा, फिर ही आराम आएगा। परन्तु मैंने सतगुरु सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज से नाम-दान लिया हुआ था। मैंने डॉक्टर से कह दिया कि मैंने ये चीजें नहीं खानी। जन्म बार-बार तो मिलता नहीं, एक ही बार मरना है। मौत आती है तो आ जाए। मैं सतगुरु जी से किया प्रण नहीं तोड़ूंगी।
सतगुरु जी ने कृपा की। हमें अपने सतगुरु जी का ख्याल आया कि क्यों न हम अपने मौला, सतगुरु-वैद्य सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज के पास जाकर बीमारी से छुटकारा पाने के लिए अर्ज करें। हमारा सारा परिवार सरसा दरबार में पहुंचा। परिवार ने मेरी बीमारी के बारे में पूजनीय शहनशाह जी के पवित्र चरणों में अर्ज की। सार्इं जी ने फरमाया, ‘उसका तो बाल भी बिंगा (बांका) नहीं होगा। वह मरती नहीं। उससे तो सेवा लेनी है।’
उसी दिन शहनशाह जी ने मेरे बड़े लड़के को एक बनियान प्रेम-निशानी के रूप में बख्शी। साथ में प्यारे दाता जी ने यह भी वचन किए कि ‘तेरे नहीं आती तो तेरी मांऊ को देना।’ जब सार्इं मस्ताना जी महाराज थड़े से नीचे उतर कर गुफा (तेरावास) की ओर जा रहे थे, तो मैं हाथ जोड़कर रास्ते में खड़ी हो गई। मेरे हाथ कांप रहे थे। जब शहनशाह जी मेरे पास आए, तो मैंने अर्ज की कि सार्इं जी, बख्श दो। पूज्य दयालु शहनशाह जी ने फरमाया, ‘पुत्र! बख्श दिया।’ शहनशाह जी इतने वचन करके और मुझे अपना पावन आशीर्वाद प्रदान करके तेरावास में चले गए।
शाम को जब हम दरबार से सरसा शहर की ओर जाने लगे तो कोई साधन (गाड़ी इत्यादि) न मिला। मालिक, सतगुरु जी ने अपनी रहमत से मुझे इतनी ताकत दी कि मैं पैदल चलकर ही शहर तक पहुंच गई थी, जबकि इससे पहले शरीर में जरा सी भी हिम्मत नहीं थी, क्योंकि छह महीने तक चले इस लम्बे बुखार ने शरीर को झकझोर कर रख दिया था। शरीर का संतुलन बिगड़ गया था। मैं चलने-फिरने में बिल्कुल असमर्थ और लाचार थी।
सरसा शहर में हम डॉक्टर सोहन लाल के पास गए। डॉक्टर ने बुखार चैक किया तो बुखार बिल्कुल भी नहीं था। उस दिन दवाई के बिना ही बुखार उतर गया, जबकि 6 महीने से दवाईयां खाने के बावजूद भी बुखार लगातार चढ़ा ही रहता था। डॉक्टर ने चैकअप करके कहा कि बुखार तो नहीं, फिर भी दवाई लेते रहना। परन्तु पूज्य सतगुरु-दाता जी की रहमत से और जब उन्होंने ये वचन कर दिए कि ‘पुत्र! बख्श दिया’, तो मैं तो पूजनीय बेपरवाह जी के उन्हीं पावन वचनों से उसी दिन ही ठीक हो गई। और प्यारे दाता जी की रहमत से मात्र एक दिन में ही पहले की तरह, बल्कि उससे भी ज्यादा तंदुरुस्त भी हो गई थी।
मैं अपने सतगुरु जी के अपने पर हुए ऐसे उपकारों का बदला कभी नहीं चुका सकती। पूजनीय सतगुरु जी के पावन तीसरे मौजूदा स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र चरणों में मेरी यही विनती है कि मुझे अपना दृढ़-विश्वास बख्शते हुए अपने पवित्र चरणों में मेरी ओड़ निभा देना जी।