बेटा! उस वास्ते प्रशाद देते हैं… सत्संगियों के अनुभव -पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी हरबंस सिंह इन्सां उर्फ भोला इन्सां सुपुत्र सचखंडवासी श्री अमर सिंह निवासी गांव मूंम जिला बरनाला (पंजाब) से अपनी माता सुरजीत कौर इन्सां पर हुई पूज्य गुरु हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की रहमत का इस प्रकार वर्णन करता है:-
करीब सन् 2000 की बात है। मेरी माता सुरजीत कौर इन्सां को अचानक उल्टियां तथा दस्त लग गए। गांव के डॉक्टर से दवाई आदि तो लेते रहे, परंतु कोई आराम न आया, बल्कि तकलीफ और अधिक बढ़ती गई। उनकी बढ़ती तकलीफ को देखकर हम माता जी को डीएमसी हस्पताल लुधियाना में ले गए। डॉक्टर ने माताजी के सभी टेस्ट करवाए। उन्होंने बताया कि ज्यादा सख्त दवाई लेने से माता जी के गुर्दे फेल हो गए हैं। दोनों गुर्दे ही काम करना छोड़ गए हैं।
अब इनका डायलिसिस करना पड़ेगा। तो वहीं हस्पताल में हर रोज़ दो टाईम डायलिसिस होने लगा। माता जी को करीब अठारह-उन्नीस दिन तक हस्पताल में दाखिल रखा। जब डॉक्टर ने माता जी को छुट्टी दी तो कहा कि इनकी जितनी उम्र बाकी है, डायलिसिस तो करवाना पड़ेगा। डॉक्टरों ने बताया कि अब हर हफ्ते यानि 7 दिन के बाद डायलिसिस करेंगे। अगर कभी ज्यादा तकलीफ हुई तो पहले आ जाना, हफ्ते बाद तो आना ही आना है। उस समय माताजी की उम्र 80 साल थी। पूरे परिवार को चिंता हो गई कि ऐसे कैसे काम चलेगा। हम हस्पताल से घर आ गए।
मैं सारी रात यही सोचता रहा कि इस मुश्किल से कैसे पार पाया जाए। मालिक सतगुरु जी ने मुझे अंदर से ख्याल दिया कि तेरा सतगुरु इतना महान है, वो सब कुछ कर सकता है। अगले दिन सुबह ही मैं डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार की तरफ चल पड़ा। आज्ञा मिलने पर मैंने अपने सतगुरु रहबर पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन हजूरी में अपनी माता जी की बीमारी के बारे में अर्ज़ कर दी तथा उपरोक्त अनुसार सारी बात भी बता दी। पूज्य हजूर पिता जी ने फरमाया, ‘बेटा! उस वास्ते प्रशाद देते हैं अपने।’ और पूज्य दातार जी ने एक पीस बर्फी पर अपनी पावन उंगली का स्पर्श प्रदान करके मुझे प्रशाद दे दिया। मैं प्रशाद लेकर तुरंत गेट के बाहर आ गया। पूज्य हजूर पिता जी ने तुरंत जीएसएम सेवादार भाई पवन खां इन्सां को मेरे पीछे भेजा। उन्होंने पूज्य हजूर पिता जी का यह संदेश मुझे बताया कि यह प्रशाद अकेली माता जी को ही देना है और किसी को नहीं।
मैं उसी दिन अपने घर आ गया और ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा बोलकर माता जी को वो प्रशाद दे दिया तथा कहा कि माँ, नारा लगाकर खा लो। यह प्रसाद पूज्य पिता जी ने सिर्फ तेरे लिए भेजा है, किसी और को नहीं देना है, इससे तू ठीक हो जाएगी। तो माता जी ने नारा लगाकर उसी समय ही प्रशाद खा लिया। डॉक्टर के कहे अनुसार सात दिनों के बाद हम माता जी को उसी हस्पताल में लुधियाना ले गए। डॉक्टर ने माताजी के खून के कुछ जरूरी टैस्ट करवाए। जब रिपोर्ट आई तो डॉक्टर ने देखकर अपने माथे पर हाथ मारते हुए हैरानी से कहा कि यह तो करिश्मा हो गया! मैंने रिपोर्ट में लिखा था कि माताजी का ताउम्र डायलिसिस करवाना पड़ेगा, लेकिन इसे तो आज भी डायलिसिस की जरूरत नहीं है।
रिपोर्ट के अनुसार तो माताजी को कभी डायलिसिस की जरूरत पड़ेगी ही नहीं। वह पूछने लगा कि माताजी, आप किसकी पूजा करते हो? तेरी बीमारी किधर गई! किसने खत्म की? माता जी कहने लगी कि मैं डेरा सच्चा सौदा सरसा जाती हूँ और अपने गुरु-पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को ही अपना भगवान मानती हूँ। इस पर डॉक्टर ने कहा कि तू उन संतों के पैर पकड़ लेना, जिन्होंने तेरी इतनी बड़ी बीमारी को जड़ से ही काट दिया है। अब मौज करो। बाद में डॉक्टर ने परिजनों को कहा कि अब माता जी बिल्कुल ठीक हैं। हालांकि डॉक्टर ने फिर भी कुछ दवाइयां दे ही दी थी।
इस बात को आज 25 वर्ष हो गए हैं, माताजी अब 105 वर्ष की हो चुकी हैं और बिल्कुल स्वस्थ हैं और हर समय अपने सतगुरु जी का शुक्राना करती रहती हैं। अपने पूज्य सतगुरु पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र चरण-कमलों में यही दुआ-प्रार्थना है कि पूरे परिवार पर अपनी अपार रहमत इसी तरह बनाए रखें जी और ता-उम्र सेवा-सुमिरन और अपने प्रति दृढ़-विश्वास बख्शना जी।