grandpa's gift -sachi shiksha hindi

grandpa’s gift नानाजी का उपहार
सुबह की गाड़ी से जौनी के नानाजी आने वाले थे। जौनी अपने पापा के साथ नानाजी को लेने स्टेशन गया। गाड़ी ठीक समय पर आ पहुंची। जौनी और उस के पापा, नानाजी को ढूंढने लगे। तभी जौनी को दूर फर्स्ट क्लास के डब्बे के दरवाजे पर नानाजी खड़े दिखाई दिए।

नानाजी, नानाजी, चिल्लाता हुआ जौनी डब्बे के पास दौड़ा दौड़ा गया।
नानाजी उसे देख कर हंसते हुए डब्बे से उतरे। उस ने उत्सुकता से नानाजी के हाथों की तरफ देखा। उन के बाएं हाथ में एक बैग था और दाहिने हाथ में एक छड़ी। इस से पहले जब वह 4 बार आए थे, तब उन के दाहिने हाथ में उस के लिए उपहारों का पैकेट था।

शायद नानाजी उपहार गाड़ी में भूल आए हैं, यह सोच कर उस ने पूछा, ’नानाजी, आप का और सामान कहां है?
और सामान? मेरे पास तो सिर्फ यही सामान है, बैग और छड़ी, नानाजी ने हंस कर कहा।
जौनी का मुंह उतर गया। तब तक उस के पापा भी वहां आ पहुंचे। तीनों टैक्सी में सवार हो गए। सारे रास्ते जौनी अपने को धीरज बंधाता रहा, ’शायद नानाजी उपहार बैग में रखकर लाए होंगे और घर पहुंचते ही दे देंगे। उस के नानाजी खाली हाथ आएं, यह कैसे हो सकता है।

लेकिन नानाजी तो घर आने के बाद भी चुप रहे। जौनी रह रह कर नानाजी के इस अनोखे बरताव पर सोचता रहा, ’आज तक नानाजी उस के लिए कुछ न कुछ उपहार लाते रहे। फिर इस बार क्या हुआ?
वह नानाजी के पास जा कर बोला, ’अब मैं अच्छा बच्चा बन गया हूं। आप को यहां से गए 5 महीने हो गए हैं न। मैं सिरदर्द का बहाना कर के घर में कभी नहीं बैठा हूं। रोज स्कूल जाता हूं।

’शाबाश‘ नानाजी ने हंस कर कहा। ’फिर आप मुझ से गुस्सा क्यों हैं?‘ ’यह तो ’उलटा चोर कोतवाल को डांटे‘ वाली बात हुई। गुस्सा तो मुझ से तुम हो और पूछ रहे हो कि मैं क्यों गुस्सा हूं? सुबह टैक्सी में तुम चुप क्यों थे?‘ जौनी की समझ में न आया कि अब क्या कहे। वह सोचने लगा, ’अगर नानाजी उस से गुस्सा नहीं हैं तो उपहार जरूर लाए होंगे। क्यों न उन से पूछ लिया जाए।

उस ने धीरे से उन के पास जाकर कहा, ’नानाजी‘ ’कहो कहो, क्या बात है?
तभी मम्मी कमरे में आ गई। जौनी को चुप होना पड़ा क्योंकि उन्होंने कह रखा था कि किसी से उपहार मांगना बुरी बात है। नानाजी के आने की खुशी में मम्मी ने खीर बनाई थी। खाना खा कर जौनी नानाजी के कमरे में आ गया। वह उन के आने से पहले ही बैग खोल कर देखना चाहता था कि उस के लिए खिलौने बैग में हैं या नहीं।

वह बैग को उठा कर देखने ही लगा था कि नानाजी कमरे में आ गए और बोले, ’अच्छा, तो नन्हे पहलवान की ताकत की परीक्षा हो रही है। उठाओ उठाओ, जरा हम भी देखें, तुम बैग कितना ऊपर उठा सकते हों?
जौनी ने बैग को सिर की ऊंचाई तक उठा कर कहा ’’यह देखो नानाजी, हलका लग रहा है। क्या यह खाली है?‘‘
नानाजी हंसे, ’हां, एक धोती और एक कुर्ता ही तो है इस में।‘ जौनी रोआंसा हो गया।

शाम को नानाजी उसे पार्क ले गए। वहां उस के बहुत से दोस्त भी आए हुए थे। मैची उसे देखते ही दौड़ी आई। दोनों एक झूले पर बैठ गए। मैची जौनी के नानाजी को पहचानती थी और यह भी जानती थी कि वह इस बार जौनी के लिए बंदूक और हवाई जहाज लाने वाले हैं। उस ने पूछा, ’क्यों जौनी, कैसी है तुम्हारी बंदूक? ’बंदूक वंदूक कुछ नहीं लाए, नानाजी‘ जौनी ने कहा ’शायद भूल गए हैं।‘

’तुम ने पूछा नहीं कि क्यों नहीं लाए? नहीं, किसी से उपहार मांगना ठीक है क्या?
नानाजी एक पेड़ की ओट से सारी बातें सुन रहे थे। कुछ देर बाद जौनी और उस के नानाजी घर आ गए।
जौनी सोने चला गया। उस की समझ में नहीं आ रहा था कि नानाजी एकदम भुलक्कड़ कैसे हो गए।

सुबह जौनी उठा तो बहुत उदास था। नानाजी आंगन में बैठे थे। वह उन्हें ’बायबाय‘ कर के स्कूल जाने ही वाला था कि नानाजी ने पुकार कर कहा, ’जौनी, अलमारी में एक बड़ा पैकेट रखा है। जाओ, उसे ले आओ।
जौनी दौड़ा-दौड़ा अलमारी से पैकेट निकाल लाया। वह बहुत खुश हो रहा था लेकिन उसे संदेह भी हो रहा था कि शायद पैकेट में कुछ और ही न हो।

नानाजी ने कहा, ’पैकेट खोलो। जौनी ने जब पैकेट खोला तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा। पैकेट में पीले और लाल रंग का छोटा सा हवाई जहाज और एक बंदूक थी। यह कैसे हो सकता था, ’नानाजी ठठा कर हंस पड़े, ’मैं तो तेरी परीक्षा ले रहा था। ’कौन सी परीक्षा?

’तेरे सब्र और शिष्टाचार की। मैं देखना चाहता था कि उपहार न देने पर तुम गंवार बच्चों की तरह फटे मुंह उपहार तो नहीं मांगते। ’तो क्या मैं परीक्षा में पास हूं।‘ ’हां, इस के लिए मैं तुम्हें एक और उपहार दूंगा।‘
’लेकिन नानाजी, क्या आप को मालूम है कि आप की इस परीक्षा के कारण मैंने कल का दिन कितनी बेचैनी से काटा?‘
’हां, मालूम है। मैं तेरी हरेक हरकत गौर से देख रहा था।

फिर नानाजी ने हवाई जहाज में चाबी भरी। हवाई जहाज ऊपर हवा में उड़ कर वापस जमीन पर उतर आया।
’यह रहा डबल उपहार, ’नानाजी ने कहा। जौनी ने खुशी से ताली बजा दी।
-नरेंद्र देवांगन

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