Teach household chores to boys too -sachi shiksha

लड़कों को भी सिखाएं घर के काम

घरेलू कार्य के लिए समाज में अब भी केवल लड़की को ही शिक्षित करना अनिवार्य समझा जाता है। किशोरावस्था में पहुंचते ही उसके लिए नसीहतों का सिलसिला शुरू हो जाता है – अरे यह काम यहां नहीं सीखेगी तो क्या ससुराल में जाकर सीखेगी? ’या‘ बेटी ससुराल में मायके की लाज रखने के लिए घर काम तो अच्छी तरह सीखना ही पड़ता है। इस तरह की बात औसतन सभी घरों में होती है। इतना ही नहीं, ससुराल में भी घरेलू कार्य का अनुभव कम होने पर उसे अनेक ताने सुनने पड़ते हैं।

अधिकांश मां-बाप लड़की को अधिक से अधिक घरेलू शिक्षा देने का प्रयत्न करते हैं। विद्यालयों में भी उनके लिए गृह विज्ञान का पाठ्यक्र म पहले से ही निर्धारित होता है। जो मां-बाप स्कूल में अन्य विषयों की शिक्षा दिलाते हैं, वे घर पर ही घरेलू शिक्षा देने का पूरा-पूरा प्रयास करते हैं लेकिन ऐसा घर शायद ही कोई हो, जहां लड़के को घरेलू कार्य का प्रशिक्षण दिया जाता हो या कोई लड़का स्कूल में गृह विज्ञान की शिक्षा लेता हो।

देखा जाए तो घरेलू कार्य की शिक्षा लड़कों के लिए भी उतनी ही अनिवार्य है जितनी लड़कियों के लिए लेकिन इसे तो औरतों वाला कार्य कहकर लड़के को हमेशा दूर ही रखा जाता है जबकि होना यह चाहिए कि लड़कों को भी इसकी शिक्षा अपने लिए अनिवार्य समझनी चाहिये।

घरेलू काम काज का ज्ञान न होने की वजह से उन्हें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, यह किसी से छिपा नहीं है। नौकरी के लिए अधिकांशत: घर से बाहर ही जाना पड़ता है। घरेलू काम न आने का तब उन्हें कितना मलाल होता है, वे ही जानते हैं।

कुछ समय पूर्व जब मैं गांव गया तो मेरी मुलाकात एक नवनियुक्त अध्यापक महोदय से हुई। जब उनसे औपचारिक परिचय के बाद मैंने पूछा कि वहां के लोग और क्षेत्र कैसे लगे तो उन्होंने जवाब दिया कि और तो सब कुछ ठीक है लेकिन होटल नहीं है। इस पर मैंने कहा-भला गांव में होटल का क्या काम! तब उन्होंने बताया कि उन्हें चूल्हा तक जलाना नहीं आता। खैर, जैसे-तैसे स्कूल के बच्चे उनका खाना आदि बना दिया करते थे। उन अध्यापक महोदय का कहना था कि बचपन में मां-बाप न जाने क्यों इतनी महत्त्वपूर्ण शिक्षा से वंचित रखते हैं।

ऐसा नहीं कि इस तरह की समस्याओं से केवल उन्हीं को दो चार होना पड़ता है जो घर से दूर और अकेले नौकरी करते हैं बल्कि उन लोगों को और अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है जो परिवार के साथ रहते हैं।
यदि विस्तृत सर्वेक्षण किया जाये तो नतीजा यही निकलेगा कि अधिकांश लोग घरेलू कार्य की शिक्षा न जानने के कारण पारिवारिक परेशानियां झेलते हैं। मेरा अपना अनुभव तो यही बताता है कि शत-प्रतिशत लोग घरेलू कार्य के लिए महिलाओं पर ही निर्भर रहते हैं।

घर-परिवार में अनेक बीमारियां होती रहती हैं। बीमार चाहे कोई भी क्यों न पड़े, परेशानी होती ही है। यदि गृहिणी बीमार पड़ जाये तो और आफत। खाने के लिए होटल की शरण और कपड़े आदि धोने के लिए धोबी की। यदि पति को काम आता है तब तो ठीक, अन्यथा बच्चों के साथ भी हो परेशान।

ऐसी ही एक घटना कुछ समय पूर्व मेरे सामने तब घटी जब मैं अपने किसी रिश्तेदार के यहां गया। उनकी पत्नी बीमार थी और बच्चे छोटे-छोटे। जब वे खाना होटल से लेने जाने लगे तो मैंने कहा- क्या खाना घर पर नहीं बनाते? इस पर उन्होंने कहा- क्या करूं कभी खाना बनाने का प्रयत्न नहीं किया। अब रीता बीमार है तो कौन बनायेगा?

इस तरह की घटनायें लगभग सभी के साथ घटती हैं लेकिन कोई भी इस ओर नहीं सोचता कि लड़कों को भी गृह कार्य की शिक्षा देना अनिवार्य है। यहां तक कि वे लोग जो स्वयं इसकी अज्ञानता का दुष्परिणाम भुगत चुके हैं, वे भी इसे औरतों का काम कहकर लड़कों को इसकी शिक्षा नहीं देते। जहां एक ओर लड़की घर का संपूर्ण कार्य, यहां तक कि खुद के कपड़े आदि सिलने में पूर्णतया आत्मनिर्भर होती हैं, वही लड़का कमीज या पैंट का टूटा बटन तक लगाने के लिए बहन, मां या भाभी आदि पर निर्भर रहता है।

जहां एक ओर नौकरी-पेशा लड़कियां स्वयं अपने हाथों से हर कार्य करती हैं, वहीं लड़के हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं। शायद ही कोई लड़की ऐसी होगी जो होटल में नियमित खाना पसंद करती हो लेकिन पुरुष को अक्सर नियमित रूप से होटल पर भोजन करते या धोबी आदि से कपड़े धुलवाते देखा जा सकता है। ऐसा वह खुशी से नहीं करता बल्कि रसोई आदि का काम न आने की वजह से करता है।

लड़कों की आने वाली पीढ़ी को इस तरह की घरेलू परेशानियों से बचाने के लिए मां-बाप को चाहिये कि वह लड़की के साथ-साथ लड़के को भी उचित रूप से गृह-कार्य की शिक्षा दे क्योंकि लड़का ही अक्सर इस कार्य की अनभिज्ञता के कारण परेशानियों का शिकार होता है।
-लक्ष्मण सिंह धामी

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