बेइज्जत करना कोई रिवाज तो नहीं
कुछ युवक अपने परोसे भोजन से पकवान उठा-उठाकर पंडाल के बाहर घूम रहे कुत्तों को खाने की दावत दे रहे थे। मौज करने का अर्थ क्या किसी की इज्जत से खेलना होता है, यह अब उन्हें कौन समझाए। वे तो बस बराती मात्र हैं, जिन्हें उचित अनुचित कैसा भी व्यवहार करने की विशेष छूट मिली हुई है।
एक बारात में शामिल होने का मौका मिला। पढ़े-लिखे परिवार की बरात जब गली-मुहल्ले घूमती कन्या वालों के घर रात सात बजे के स्थान पर ग्यारह बजे पहुंची तो बारातियों के स्वागत व रस्मो-रिवाज के लिए वधू पक्ष में हड़बड़ी मच गई। कतार में खड़े वधू पक्ष के बुजुर्ग, छोटे-बड़े हर बाराती को आदर से हाथ जोड़ नमस्कार कर रहे थे। उनमें अगर तीन वर्ष का बच्चा था तो उससे भी छोटे-बड़े सभी नमस्कार कर रहे थे। इसी बीच अंदर जाने की जल्दी में कुछ युवक बिना नमस्कार के अंदर चले गए। यह माजरा वर पक्ष के कुछ लोगों ने देखा तो नमस्कार न कर पाने का कटाक्ष उन्होंने वधू पक्ष को सुनाना शुरू कर दिया।
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खैर, चाय-कॉफी के बाद वधू पक्ष वालों ने बारातियों के खाने की व्यवस्था की। जो भोजन रात को आठ बजे देना था वही भोजन जब बारह बजे रात को दिया जा रहा था तो अधिकांश व्यंजनों को गरम किया गया। बारात के लिए बैठाकर भोजन परोसने की व्यवस्था की गई थी। भोजन करने के लिए बैठे युवकों की मंडली में अजीब नजारा देखने को मिला। कोई मिर्च अधिक होने पर बड़बड़ा रहा था तो कोई ठीक से सब्जियां गरम न होने पर। कोई पूड़ियों को कच्चा बता रहा था तो कोई कह रहा था कि कचौड़ियां तो जल गई हैं।
कुछ ही देर में पंडाल सब्जी बाजार लगने लगा था। कुछ युवक अपने परोसे भोजन से पकवान उठा-उठाकर पंडाल के बाहर घूम रहे कुत्तों को खाने की दावत दे रहे थे। फिर क्या था, एक तरफ कुत्ते झपट रहे थे, दूसरी तरफ बाराती परोसने वालों से सारा खाना अपनी प्लेटों में रखवाने पर तुले थे और उन्हीं के सामने कुत्तों पर उछाल रहे थे। उनके इस व्यवहार पर साथ आए बुजुर्गों ने कोई आपत्ति नहीं की। अगर किसी ने कुछ कहना या मना करना चाहा तो उन्हें दूसरों ने ‘बच्चे हैं मौज करने दो‘ कहकर चुप करा दिया। मौज करने का अर्थ क्या किसी की इज्जत से खेलना होता है, यह अब उन्हें कौन समझाए। वे तो बस बाराती मात्र हैं जिन्हें उचित अनुचित कैसा भी व्यवहार करने की विशेष छूट मिली हुई है।
इसके बाद कई विवाहों में शामिल हुए। उनमें से एक उच्च मध्यमवर्गीय परिवार की ओर से बाराती बनने का मौका मिला। वर-वधू दोनों नौकरीपेशा थे। दोनों के पिता सरकारी मुलाजिम थे। दोनों परिवार पूर्ण शिक्षित, प्रगतिशील व संपन्न थे। यहां भी वही पहले जैसा हाल था। निर्धारित समय के स्थान पर देर से बारात पहुंची। पढ़े-लिखे आधुनिक थे, किंतु काफी-चाय की जगह शराब ने ली। भोजन जबकि यहां बढ़िया था, किंतु यहां भी भोजन का ढेर अपनी प्लेटों में लेकर छोड़ने का सिलसिला चल रहा था। उन्हें भोजन कम पड़ जाने व बरातियों को पर्याप्त भोजन न मिल पाने की चिंता नहीं थी। वे तो बस बाराती थे, उन्हें क्या।
बारात में साथ गई महिलाओं का भी अहम हिस्सा होता है। जब वे कन्या पक्ष वालों के दान-दहेज, स्वागत-सत्कार, वधू के रंग-रूप, चाल-ढाल आदि पर फब्तियां कसती हैं, उस समय वे मात्र बाराती होती हैं। ऐसे में वे पति व बच्चों को वधू के घर शरारत करने पर रोकती नहीं हैं जबकि पुरुष हो या महिलाएं उन्हें अपने मान- सम्मान की जितनी फिक्र लगी होती है, उतनी ही कन्या पक्ष वालों को रहती है। वे भी अपने घर आए मेहमानों को यथा योग्य सम्मान देने का प्रयास करते हैं।
आप नए रिश्ते से जुड़ने जा रहे हैं, ऐसे में संपूर्ण वर पक्ष एवं बारातियों का भी फर्ज बनता है कि अपने सम्मान का ध्यान रखते हुए वे अपने साथ आए रिश्तेदारों, दोस्तों को कोई गलत हरकत न करने दें। कन्या पक्ष के साथ पूर्ण सहयोग करें। शरारत करने वालों व फिकरे कसने वालों को शह न दें। उन्हें प्यार, अपनत्व से ऐसा करने से रोकें और संपूर्ण आयोजन को सफल बनाने में मदद दें।
-नरेंद्र देवांगन