Save Birds लाईवे नेटवर्क का हिस्सा है भारतीय उप-महाद्वीप
9 मई के विश्व प्रवासी पक्षी दिवस पर एक से दूसरे देशोंं में प्रवास करने वाले पक्षियों का जिक्र लाजमी हो जाता है। दुनियाभर में जीव-जन्तुओं और पशु-पक्षियों की लाखों प्रवासी प्रजातियां हैं जो अपने अस्तित्व के लिए एक देश से दूसरे देश की सीमाओं से भी आगे का सफर तय करते हैं।
इनमें से बहुत सी प्रजातियों के अस्तित्व पर अब खतरा पैदा हो गया है। इन प्रजातियों को बचाने और इनका जीवन आसान बनाने के लिए विगत वर्ष गुजरात में प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण विषय पर 13वीं कॉन्फ्रेंस आॅफ पार्टीज (कॉप) सम्मेलन हुआ था। जिसमें पृथ्वी को जोड़कर रखने में इन प्रजातियों की भूमिका और उनका अपने घरों में स्वागत करना टोपिक खास था।
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बता दें कि सम्मेलन में प्र्रवासी प्रजातियों के बेहतर संरक्षण के लिए 130 देशों के पर्यावरण विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं तथा जैवविविधता क्षेत्र के अग्रणी लोगों ने एक सुर में कहा था कि ‘युगों तक, वन्यजीवों और उनके पर्यावास का संरक्षण भारत के ऐसे सांस्कृतिक लोकाचार का हिस्सा रहा है, जो करुणा और सह-अस्तित्व को संरक्षण हेतु यह कन्वेंशन अंतर्राष्टÑीय स्तर पर कानूनी अधिकार प्रदान करता है।
भारत कई प्रवासी जानवरों और पक्षियों का अस्थायी घर है। अमूर फाल्कन, बार हेडेड घीस, ब्लैक नेकलेस क्रेन, मरीन टर्टल, डूगोंग, हंपबैक व्हेल इत्यादि इनमें से कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियां हैं। भारतीय उप-महाद्वीप प्रमुख पक्षी लाईवे नेटवर्क का हिस्सा है। इसे मध्य एशियाई उड़ान मार्ग भी कहते हैं। इसके अंतर्गत आर्कटिक एवं हिन्द महासागर के मध्य का क्षेत्र आता है। इस क्षेत्र में जलीय पक्षियों की 182 प्रजातियों की कम-से-कम 279 आबादी पाई जाती है, जिसमें से 29 प्रजातियां वैश्विक रूप से संकट की स्थिति में हैं। भारत ने मध्य एशियाई लाईवे के अंतर्गत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण के लिये राष्टÑीय कार्य योजना भी शुरू की है।
प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर जलवायु परिवर्तन, समुद्री प्रदूषण व प्लास्टिक प्रदूषण का गहरा प्रभाव पड़ रहा है। यूएन पर्यावरण एजेंसी की कार्यकारी निदेशक इन्गर एण्डरसन ने एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए बताया कि एक बड़ी चिन्ता, टूट कर बिखर जाने वाले उत्पादों से जुड़ी है, जैसे कि प्लास्टिक के महीन कण, और बेहद कम मात्रा में मिलाये जाने वाले रासायनिक पदार्थ। ये जहरीले हैं और मानव स्वास्थ्य, वन्यजीवन स्वास्थ्य व पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये नुकसानदेह हैं। समुद्र में कचरे की कुल मात्रा में से 85 प्रतिशत प्लास्टिक ही है।
वर्ष 2040 तक इसकी मात्रा तीन गुना होने की आशंका है। यह तटीय रेखा के प्रति मीटर हिस्से मेें लगभग 50 किलोग्राम प्लास्टिक है, इससे समुद्री जीव-जंतुओं, पक्षियों व स्तनपायी पशुओं के लिये एक बड़ा जोखिम पैदा होने की आशंका है। प्लास्टिक के दुष्प्रभावों से मानव शरीर भी अछूता नहीं है। समुद्री भोजन, पेय पदार्थों और साधारण नमक में भी मिल जाने वाले प्लास्टिक का सेवन नुकसानदेह है। वहीं हवा में लटके महीन कण, त्वचा को बेधते हैं और साँस के जरिये भी इन्सान के अन्दर आ सकते हैं।
एकल उपयोग प्लास्टिक पर्यावरण संरक्षण के लिए चुनौती है। हालांकि भारत सरकार इसके उपयोग में कमी लाने के लिए मिशन मोड में है। पक्षियों के लिए कार्य करने वाली संस्था कॉप के सम्मेलन में प्रवासी पक्षियों की जनसंख्या में हो रही कमी का हल निकालना और इनके रहने के ठिकानों को सुरक्षित करना खास चर्चा का विषय रहा। प्रवासी पक्षियों की घटती जनसंख्या को साल 2027 तक रोकना इस योजना के अल्कालिक लक्ष्यों में शामिल है।
रोचक बातें:
- भारत देश में मंगोलिया से आकर सर्दियां गुजारने वाले पक्षी तथा मंगोलिया में जाकर गर्मियां गुजारने वाले पक्षी हंस दोनों देशवासियों को आश्चर्य में डाल देते हैं। भारत का सुप्रसिद्ध पक्षी राजहंस अपने देश में सर्दियां गुजारता है और तिब्बत जाकर मानसरोवर झील के किनारे अण्डा देता है।
- कर्नाटक राज्य के श्रीरंगपट्टनम में स्थित, रंगनाथिट्टू पक्षी अभयारण्य में कावेरी नदी के तट पर स्थित छह अलग-अलग टापू हैं। यह राज्य का सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य है और प्रवासी पक्षियों की कुछ सबसे आकर्षक प्रजातियों का घर है।
- कैरोला के पैरोटिया को पक्षियों की रानी के रूप में जाना जाता है। उत्तर गोल्डन तीतर पाए जाने वाले दुर्लभ पक्षियों में से एक है।
- सबसे छोटा प्रवासी पक्षी छोटी जलरंक (वजन 15 ग्राम जितना) आर्कटिक क्षेत्र से भारत पहुंचने के लिए 8000 किमी से अधिक की यात्रा करता है।