चूहे ने घूमा मेला
पचरी वन में एक चूहा अपने परिवार के साथ रहता था। पास के वन बंगोली में हर साल मेला लगता था। चूहे ने कभी मेला नहीं देखा था। उसकी भी मेला देखने की इच्छा थी। एक दिन चूहे ने सूअर से कहा, ‘सूअर भाई, मैं मेला देखने जाना चाहता हूं। मेला कैसा होता है?’
सूअर ने कहा, ‘भाई, तू भूलकर भी मेले में न जाना। वहां बहुत भीड़ होती है। तू भीड़ में दबकर मर जाएगा।’ सूअर की बात सुनकर चूहा मेले का नाम लेने से ही डरने लगा लेकिन इस बार चूहे ने पक्का निश्चय किया कि वह मेला घूमने जरूर जाएगा। उसके बाद चूहा अपनी चेकबुक लेकर बैंक गया और अपने खाते से एक हजार रूपए निकलवा लाया।
दूसरे दिन बन-ठनकर चूहे ने अपने बच्चों से कहा, ‘बच्चो, मैं मेला देखने जा रहा हूं। तुम लोग अपना ख्याल रखना। मैं शाम तक लौट आऊंगा।’
चूहे के बेटे ने कहा, ‘टा टा पापा, मेरे लिए बर्फी जरूर लाना’
चूहा मेले में पहुंचा। वास्तव में वहां बहुत भीड़ थी। खुद को भीड़ से बचाते हुए वह मेले में घूमने लगा। बकरा कपड़े बेच रहा था। चूहे ने बच्चों के लिए टी शर्ट और जींस खरीदीं। कुछ आगे बढ़ने पर उसे घोड़ा झूला झुलाता मिला।
चूहे ने कभी झूला नहीं झूला था, अत: वह झूले में बैठ गया। झूला ऊपर जाता तो उसे बहुत आनंद आता लेकिन जब नीचे आता तो उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती। वह डर से आंखें बंद कर लेता। चूहे की दशा देखकर घोड़ा जानबूझ कर जोर-जोर से झूला झुलाने लगा। आसपास खड़े जानवर भी चूहे की हालत देखकर हंस-हंसकर लोटपोट हो रहे थे। गधा गोलगप्पे बेच रहा था। चूहे ने ढेर सारे गोलगप्पे खाए।
घर लौटने से पहले चूहा हाथी दादा के फाइव स्टार होटल में बर्फी लेने पहुंचा। होटल में तरह-तरह की मिठाई सजी थी। मिठाई देखकर चूहे के मुंह में पानी आ गया। मिठाई तोल रहे गैंडे से चूहे ने कहा, ‘गैंड़ा भाई, दो किलो बर्फी देना’
हाथी दादा बर्फी का एक टुकड़ा चूहे को देते हुए बोले, ‘यह बर्फी चखकर देखो।’
चूहे ने शरमाते हुए कहा, ‘हाथी दादा, आपकी मिठाई तो पूरे वन में मशहूर है। चखने की जरूरत नहीं।’
बर्फी का डिब्बा लेकर चूहा घर लौट रहा था। तभी उसकी नजर तस्वीरें बेच रही लोमड़ी पर पड़ी। चूहे ने अभिनेता तोता राम, अभिनेत्री गौरैया और गायिका कोयल रानी की तस्वीरें खरीदीं। तस्वीरों को लटकाने के लिए उसने दो रूपए की कीलें भी खरीद लीं।
चूहा खुशी-खुशी घर लौट रहा था। रास्ते में बरगद के एक पेड़ पर एक बंदर रहता था। वह बहुत चालाक और आलसी था। दूसरों की चीजें लूटकर अपना पेट भरता था। मेले से लौट रहे चूहे पर बंदर की नजर पड़ी। वह समझ गया कि चूहे के झोले में खाने की चीजें हैं। अत: पूछा, ‘चूहा भाई, मेला देखकर आ रहे हो क्या?’
‘हां, बहुत मजा आया,‘ चूहा बोला।
बंदर ने अपनी चालाकी दिखानी शुरू की। बोला, ‘चूहा भाई, थोड़ी देर पेड़ के नीचे आराम कर लो। फिर चले जाना।’ चूहा मान गया। झोला रखकर जमीन पर लेट गया।
‘मेले से क्या खरीदा?‘ बंदर ने पूछा।
‘बच्चों के लिए कपड़े और बर्फी,‘ चूहे ने बताया। बर्फी का नाम सुनते ही बंदर के मुंह में पानी आ गया। बोला, ‘भाई, जल्दी छिप जाओ, बिल्ली आ रही है।’
चूहा झट से पास के एक बिल में घुस गया। बंदर जल्दी-जल्दी चूहे के झोले को टटोलने लगा। टटोलने पर उसके हाथ एक पैकेट लगा। बंदर ने जैसे ही उस पैकेट को दांतों से दबाया, कीलें उसके मुंह में चुभ गईं। वह दर्द के मारे चिल्लाने लगा।
चूहे ने बिल से झांककर देखा। वह समझ गया कि बिल्ली का बहाना बनाकर बंदर उसकी बर्फी खाना चाहता था। अत: पास आकर बोला, ‘भाई, तुम्हें लालच की सजा मिल गई। बर्फी खानी थी तो मांग लेते। मैं खुद दे देता।’
बंदर बोला, ‘भाई, मुझे माफ करना। मैं भविष्य में ऐसा काम नहीं करूंगा। मुझे अपनी करनी का फल मिल गया।’
यह सुन चूहे ने बंदर को बर्फी के दो पीस दिए और फिर घर की ओर चल दिया।
-नरेंद्र देवांगन