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परीक्षाबनाए रखें आत्मविश्वास keep-the-test-confident
कहा गया है कि जीवन एक संघर्ष है, एक निरंतर चलने वाली परीक्षा है लेकिन परीक्षा शब्द कुछ मनुष्यों के लिए इतना भयंकर होता है कि इस शब्द को सुनते ही उनके पसीने छूटने लगते हैं लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है।  परीक्षा जीवन का अनिवार्य अंग है। जो परीक्षाओं से नहीं गुजरा, उसका जीवन भी कोई जीवन है।

परीक्षा एक ऐसी भट्टी है जिसमें तपकर खरा सोना तो कुंदन बन जाता है लेकिन खोटा सोना अपना अस्तित्व ही खो बैठता है। हर व्यक्ति हर परीक्षा में सफल होना चाहता है। परीक्षा चाहे किसी भी प्रकार की क्यों न हो, हर परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए कई बातें महत्त्वपूर्ण हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि जिस विषय की परीक्षा देनी हो, हम उसकी तैयारी करें।

बिना तैयारी के परीक्षा देना ऐसा ही है जैसे बिना तैरना सीखे गहरे पानी में उतरना। बिना तैराकी सीखे कोई भी व्यक्ति गहरे पानी में तो दूर, उथले पानी में भी नहीं उतरता, फिर स्कूल, कॉलेज अथवा किसी अन्य प्रतियोगी परीक्षा के लिए अपेक्षित तैयारी न करने का क्या औचित्य हो सकता है?  हाँ, यह बात ठीक है कि तैराकी पानी में ही सीखी जा सकती है, पानी के बिना नहीं, लेकिन इसका प्रारंभ घनघोर गर्जन करते समुद्र अथवा विपुल जल राशि युक्त महानद में संभव नहीं। इसका प्रारंभ तो शांत उथले जल में ही संभव है।

जीवन की हर परीक्षा के लिए भी ऐसा ही परिवेश अपेक्षित है और वो परिवेश प्रारंभ होता है क, ख, ग, घ अथवा ए, बी, सी, डी से। हम प्रारंभ से ही हर विषय को भली-भाँति सीखें। जो विद्यार्थी शैक्षिक सत्र के प्रारंभ से ही नियमित रूप से कक्षाओं में जाते हैं, हर रोज अपना कक्षाकार्य और गृहकार्य पूरा करते हैं तथा आज का काम कल पर नहीं टालते, परीक्षा रूपी मैदान में सफलता के झंडे गाड़ते हैं, इसमें संदेह नहीं। मामला चाहे स्वास्थ्य का हो, शादी-विवाह का हो अथवा बच्चों की पैदाइश या परवरिश का, इसी प्रकार की तैयारी जीवन की सभी परीक्षाओं के लिए भी जरूरी है।

जो विद्यार्थी आत्म-विश्वास के साथ परीक्षा भवन में जाते हैं और विजयी होकर अपने माता-पिता, विद्यालय और शिक्षकों का नाम रोशन करते हैं। केवल ऐसे विद्यार्थी ही अपने आत्म-सम्मान में वृद्धि करने में सक्षम होते हैं।  कहा जाता है कि विषम परिस्थितियों में ही व्यक्ति की वास्तविक परीक्षा होती है। यहाँ तो विषम परिस्थितियाँ भी नहीं हैं और न ही कोई आपातस्थिति ही। जहाँ एक विद्यार्थी को साल भर का समय मिलता है परीक्षा रूपी युद्ध क्षेत्र में कूदने की तैयारी के लिए, वहीं जीवन रूपी परीक्षा के लिए व्यक्ति का पूरा जीवन ही उपलब्ध है।

एक किताब उठाइए और एक-एक करके सारे पाठ पढ़ डालिए। उस किताब की परीक्षा देने के बाद दूसरी किताब उठाइए और एक-एक करके उसके भी सारे पाठ पढ़कर परीक्षा दे डालिए। न किताबों की कमी है न सफलता के अवसरों की। ऐसे में भी कोई दुर्भावना से जुड़ा काम न करें अथवा असफलता का मुँह देखे तो दोष परीक्षा अथवा परीक्षक का नहीं अपितु परीक्षा देने-वाले अथवा परीक्षार्थी का अधिक है। -सीताराम गुप्ता

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