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जिसकी अपनी दुनिया है

जी हां, कॉकरोच, जिसे आम बोलचाल की भाषा में तिलचट्टा और मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में कसारा कहा जाता है, सचमुच एक अद्भुत कीड़ा है और इसकी अपनी एक दुनिया है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि तिलचट्टा विश्व का सबसे प्राचीनतम कीड़ा है। विश्वास की बात यह है कि यदि परमाणु युद्ध हुआ तो भी तिलचट्टा धरती पर बना रहेगा क्योंकि रेडियोधर्मिता से यह कतई प्रभावित नहीं होता।

अमेरिकावासी काकरोच से बेहद परेशान हैं। उनको नष्ट करने के लिए तरह-तरह के घातक रसायनों और जैविक हथियारों के उपयोग के बावजूद यह करोड़ों, अरबों की तादाद में पनप रहे हैं।

चूंकि स्टीरियो, वीडियो, कंप्यूटर आदि के भीतर गर्मी रहती है, इसलिए ये वस्तुएं काकरोचों को रास आती हैं। अब वैज्ञानिक इन्हें नष्ट करने के उपाय खोजने के बजाय ऐसे उपाय खोज रहे हैं जिनसे इनकी उत्पत्ति पर अंकुश लगाया जा सके। उल्लेखनीय है कि कॉकरोच की एक जोड़ी साल भर में एक लाख कॉकरोच पैदा करती है।

काकरोच बहुत सख्त होता है इसलिए तपते रेगिस्तान से लेकर बर्फीले इलाकों तक हर जगह यह इत्मीनान से रह लेता है। घरों में यह किताबों, रेडियो सेट, मेज-कुर्सियों आदि में दुबक कर रह सकता है।

तिलचट्टों | Cockroach की 35000 से अधिक प्रजातियां हैं। इसमें से बहुत कम, केवल एक प्रतिशत घरों में मिलती हैं।

बाकी खुले मैदानों, जंगलों और नहरी इलाकों में पाई जाती है।

काकरोच काफी सख्त होने के मूल में सबसे बड़ा कारण है कि वह हर चीज बड़े चाव से खा लेता है।

पौधों की कोपलें, जूते, कपड़े धोने का साबुन, नरम लकड़ी आदि किसी भी खाद्य-अखाद्य पदार्थ को वह आसानी से अपना भोजन बना लेता है।

खाने के लिए इतनी सारी चीजें रहने के बावजूद तिलचट्टा यदि चाहे तो एक महीने तक बिना पानी और भोजन के जीवित रह सकता है।

दो माह तक वह केवल पानी पर अपना गुजारा कर सकता है और 6 माह तक बिना पानी के, केवल खुश्क भोजन भी काकरोच को मिले, तो भी वह जीवित रह लेगा।

काकरोच हालांकि एक बदबूदार कीड़ा है लेकिन देखा जाए तो यही बदबू उसका सुरक्षा-कवच भी है। कीड़े-मकोड़े खाने वाले बहुत से जानवर महज कॉकरोच की बू के कारण ही उसे खाना पसंद नहीं करते।

जनसाधारण में काकरोच के बारे में यह धारणा बनी हुई है कि वह हैजा और टाइफाइड के कीटाणु फैलाता है लेकिन विभिन्न प्रयोगों के बाद वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि काकरोच पर यह आरोप सर्वथा निर्मूल व निराधार है।

काकरोच की आगे की निकली हुई मूछें इसके शरीर का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है। यह मूछें इसके शरीर से भी लंबी होती हैं। इनकी सहायता से काकरोच अंधेरे में अपना रास्ता तय करता है। इन्हीं से यह अपनी खुराक या बदबू महसूस करता और आवाजें सुनता है।

काकरोच एक संकोची जीव है। यह दिन में दुबका रहता है और रात को अपने भोजन की तलाश में निकलता है। इसके सिर पर तीन अन्य छोटी-छोटी लेकिन तेज आंखें होती हैं। इनके जरिए यह दूर-दूर तक बड़ी सहजता से देख पाता है।

काकरोच एक बेहद सख्त कीड़ा है इसलिए यह यदि बर्फ में दबा दिया जाए तो बर्फ के पिघलते ही वह निकल भागेगा। इस पर कोई भारी वस्तु रख दी जाए तो यह मरता नहीं और उस वस्तु के हटते ही वहां से आगे बढ़ जाता है।

जरूरत के समय यह अपने शरीर को संकुचित कर लेने की क्षमता भी रखता है।

कॉकरोच में दौड़ने की भी बड़ी अनोखी क्षमता है। जरूरत पड़ने पर यह मीलों बगैर रुके दौड़ लेता है। कॉकरोच में प्राकृतिक प्रकोपों को बर्दाश्त कर पाने की क्षमता इंसान से सौ गुना अधिक है।

काकरोच अपनी इन विलक्षण क्षमताओं के बूते पर ही तो 35 करोड़ बरस से भी अधिक समय से दुनियां में अस्तित्व में है।

-मुकेश उपाध्याय

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